Kunldi Tv- इसलिए दुर्योधन को थी पांडवों से नफरत, यहां जानें असली वजह

Sunday, Dec 16, 2018 - 12:14 PM (IST)

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महाभारत के कई ऐसे पात्र हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है, लेकिन एक ऐसा पात्र है जिसका जिक्र करना शायद किसी को पसंद नहीं होगा। जीं हां, आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं दुर्योधन। दुर्योधन महाभारत का ऐसा पात्र है जिसके कारण महाभारत का युद्ध छीड़ा। इसने न ही भरी सभा में दौपद्री का चीर हरण किया था। ये ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में हर कोई जानता है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि आखिर क्यों दुर्योधन से इतनी नफ़रत थी। क्यों उसने पांडवों को बेइज्जत करने के लिए दौपद्री का चीर हरण किया था। चलिए आज हम आपको बताते हैं कि दुर्योधन पांडवों से इतनी नफरत क्यों करता था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार दुर्योधन का जन्म माता गांधारी की कोख से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि अपने जन्म से ही दुर्योधन विवादों और कई लोगों की महत्वाकांक्षाओं का बलि चढ़ा। शास्त्रों के वर्णन के अनुसार गांधारी और कुंती दोनों एक ही समय पर गर्भधारण किए हुए थी। परंतु माता कुंती के पहले संतान पैदा हो गई। जब गांधारी को इस बात का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ और वो सोचने लगी कि अब उसका पुत्र राज्य का अधिकारी नहीं बन पाएगा। गांधारी ने क्रौध और दुख के आवेश में आकर गर्भ पर प्रहार करके उसे नष्ट करने की कोशिश की।

गर्भ नष्ट तो न हुआ लेकिन प्रहार होने के कारण बच्चा काफी कमज़ोर पैदा हुआ, जिसे बचाने के लिए हस्तिनापुर समेत कई आस-पास के राज्यों के वैद्यों को बुलाना पड़ा। बहुत मेहनत करने के बाद इसे बच्चा लिया गया। कहा जाता है कि इसके बाद इस बच्चे को सुयोधन नाम दिया गया। बता दें कि सुयोधन का अर्थ होता है भीषण आघातों को सहने वाला।

कहते हैं बचपन से ही सुयोधन पर बहुत महत्वाकांक्षाओं का दबाव डाला गया। सुयोधन की मां गांधारी चाहती थी कि उसका बेटा राजा बने। जिस कारण बचपन से ही इस बच्चे को पांडव पुत्रों से घृणा हो गई। जब इसे पता चला कि युधिष्ठिर राज्य का भावी राजा है तो वो कुंठा यानि निराशा से भर उठा। जिस राज्य को वह अपने राज्य की संपत्ति समझता था अब वो दूर जा रही थी। कहा जाता है कि यहीं से सुयोधन से दुर्योधन का जन्म हुआ।

दुर्योधन पांडव पुत्रों से इतनी नफ़रत करता था कि उसने इन्हें मारने के लिए मामा शकुनी की सहायता से इन्हें खत्म करने के लिए अनेकों योजनाएं बनाई। दुर्योधन ने भीम को मारने के लिए उसे गंगा ने फेंक दिया परंतु वे सफल नहीं हो पाया। इसके अलावा दुर्योधन ने लाक्षागृह में पांडवों को जलाने की कोशिश की लेकिन इसमें उसके हाथ असफलता ही लगी। कहते हैं इन सबके कारण दुर्योधन की पांडवों के प्रति नफरत दिन भर दिन बढ़ती गई।

जब पांडव बारह साल का वर्ष वनवास काट के आए तो दुर्योधन ने उन्हें सूई की नोक के बराबर भूमि भी देने से मना कर दिया। जिसके बाद श्री कृष्ण शांति प्रस्ताव लेकर कुरु सभा में गए तब दुर्योधन ने उसे भी ठुकरा दिया। माना जाता है कि इन्हों सबके चलते दुर्योधन के मन में पांडवों के लिए घृणा बढ़ती ही चली गई। 
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Jyoti

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