Ravana 10 heads: क्या आप जानते हैं रावण के 10 सिर कौन से हैं ?
punjabkesari.in Wednesday, Oct 01, 2025 - 02:01 PM (IST)

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10 heads of Ravana symbolize: भारत में मनाए जाने वाले अनेक त्यौहार और संस्कार हमें जीवन को श्रेष्ठ बनाने की प्रेरणा देते हैं। इनमें से ‘विजयदशमी’ या ‘दशहरा’ का त्यौहार, जोकि हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है, को सभी बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान ‘श्री राम’ ने ऋषि-मुनियों और संत-महात्माओं पर अत्याचार करने वाले रावण जैसे अजेय और शक्तिशाली शत्रु पर विजय प्राप्त की थी।
इसी आश्विन मास में ‘पांडव’ दुर्योधन द्वारा दिए गए अज्ञातवास के बाद प्रकट हुए थे और उसी दिन अन्यायी दुर्योधन व उसके राज्य को नष्ट करने के लिए महाभारत युद्ध का आरंभ हुआ था। प्रतिवर्ष ‘दशहरे’ के शुभ अवसर पर, भारत के सभी छोटे-बड़े शहरों में और कहीं-कहीं भारत से बाहर भी रावण का पुतला जलाने की परम्परा है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि रावण कौन है और उसके दस सिर कौन-से हैं?
वास्तव में देखा जाए तो, असली रावण है मानव के भीतर बैठे ‘दस विकार’, जिनको जलाए बिना, दशहरे के त्यौहार की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह ही लगे रहेंगे। अत: पहले हमें खुद की यह जांच करनी चाहिए कि रावण के दस सिरों में से कोई हमें लगा हुआ तो नहीं? यदि हो तो इस दशहरे पर रावण के पुतले के साथ उसे भी जला दें। आखिर कौन से हैं रावण के वे 10 सिर?
सर्वप्रथम सिर हैं ‘काम’, जो नरक का द्वार कहलाता है और मनुष्य को चमड़ी के आकर्षण का दास बनाकर उसकी बुद्धि, मानसिक बल, पवित्रता और शारीरिक शक्ति का हरण कर लेता है। ‘काम’ के वशीभूत व्यक्ति बेशर्म होकर देश और समाज के लिए कई समस्याएं पैदा कर देता है।
दूसरे नम्बर पर है ‘क्रोध’। जैसे ऊंची मंजिल से गिरने पर मानव के हाथ-पैर टूट जाते हैं, ठीक उसी प्रकार क्रोध करना भी शांति रूपी ऊंची स्थिति से आत्मा को गिराकर उसे अशांत, दु:खी और रोगी बनाने के समान है। क्रोधी व्यक्ति एकाग्रता, स्मृति, विवेक, निर्णय शक्ति, सहनशीलता, नम्रता, कर्तव्य परायणता तथा कार्यक्षमता जैसे महान गुणों को नष्ट कर देता है।
तीसरे नम्बर पर है ‘लोभ’, जिसको ‘पाप का बाप’ कहा जाता है। लोभी व्यक्ति सोते-जागते पदार्थों और धन के संग्रह के ही सपने देखता रहता है और इसके लिए बड़े से-बड़े अपराध करने में भी वह हिचकता नहीं। लोभी की मन:स्थिति सदा कंगाल रहती है और इसीलिए वह तृप्ति का सुख कभी भी ले नहीं पाता।
चौथे नम्बर पर है ‘मोह’। मनुष्य अक्सर किसी व्यक्ति या वस्तु के मोह में अंधा होकर कइयों के हक मार लेता है और इसी मोह के वशीभूत वह अकत्र्तव्य कार्य करता रहता है। पांचवें नम्बर पर है ‘अहंकार’। अपने को हर बात में आगे रखने, दिखावा करने और मैं-मैं की बीन बजाते रहने के कारण मानव जानते हुए भी ठीक बात का अनुसरण नहीं कर पाता और फिर असलियत खुलने पर उसे अपना सिर सबके सामने नीचा करना पड़ता है।
छठे नम्बर पर है ‘हठ’ या ‘जिद’। जिद्दी व्यक्ति अपनी जिद को प्रतिष्ठा का सवाल बना लेता है और उसे पूरा करने के लिए अनैतिकता की हद तक चला जाता है। सातवें नम्बर पर है ‘बदले की भावना’। जो स्वयं को न बदलकर दूसरों के प्रति मन में वैर एवं अशुभ भावना पालता है, उसका चैन सदा के लिए उड़ जाता है, वह कभी खुश नहीं रह पाता।
आठवें नम्बर पर है ‘कपट’। जो व्यक्ति अंदर घृणा रखकर, मुख पर अमृत का लेप करके चलता है, उसके अपने भी पराए बन जाते हैं और अंतत: वह सबके विश्वास और सहानुभूति को खोकर नितांत अकेला पड़ जाता है।
नौवां सिर है ‘क्रूरता’। जो दूसरों को तड़पाकर, रूलाकर, सताकर पैशाचिक आनंद लेता है, उसे इंसान नहीं अपितु हैवान का दर्जा मिलता है।
दसवां सिर है ‘कलह’। शंका, दोषारोपण, परचिन्तन, तेरा-मेरा, झूठ जिससे संबंध बिगड़ते, मन में क्लेश उत्पन्न होता और आस-पास का वातावरण भारी हो जाता है।
इन दस सिरों को काटने का तरीका है इनका पोषण करने वाले ‘देहाभिमान’ रूपी कुंड को ज्ञान के तीरों से नष्ट कर देना। तो आइए, इस वर्ष विजयदशमी के पावन दिवस पर हम सभी यह दृढ़ प्रतिज्ञा करें कि सर्वशक्तिमान परमात्मा से शक्ति लेकर हम अपने में विद्यमान मनोविकार रूपी रावण के दस सिरों का समूल नाश करेंगे और माया के चंगुल में फंसे हुए मनुष्यों को पूर्ण पवित्रता का ईश्वरीय संदेश सुनाकर रावण की इस माया नगरी पर परमात्मा श्री राम का विजय ध्वज फहराएंगे।