Rani Laxmibai Death Anniversary: अंग्रेजों को धूल चटाने वाली महान नायिका, पीठ पर पुत्र को बांधकर लड़ी आखिरी जंग
punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2024 - 01:22 PM (IST)

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बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी...
Rani Laxmibai Death Anniversary: अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का नारा बुलंद करने वाली असाधारण व्यक्तित्व की धनी और अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति रानी लक्ष्मीबाई वह वीरांगना थीं, जिन्होंने केवल 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी सेना से अंतिम क्षण तक कभी न हार मानने वाला युद्ध लड़ा।
वह रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं लेकिन जीते जी उन्होंने अंग्रेजों को अपने गढ़ पर कब्जा नहीं करने दिया था। लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 को वाराणसी में मोरोपंत तांबे के घर मां भागीरथी बाई की कोख से हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। मोरोपंत एक मराठी होने के कारण मराठा बाजीराव की सेवा में थे।
छोटी आयु में ही मां की मृत्यु के बाद मनु को पिता अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे, जहां चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग प्यार से ‘छबीली’ कहकर बुलाने लगे।
मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र चलाने की शिक्षा भी ली। सात साल की उम्र में ही घुड़सवारी सीख ली थी और इसके साथ ही तलवार चलाने से लेकर धनुर्विद्या आदि में भी निपुण हो गई थी।
1842 में इनका विवाह झांसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वह झांसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।
सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गई।
1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई।
पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार के बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानकर अंग्रेज सरकार को सूचना दे दी थी।
21 नवम्बर, 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
झांसी के महाराजा की मृत्यु के समय भारत में ब्रिटिश इंडिया कंपनी का वायसराय डलहौजी था। उसको लगा कि यह झांसी पर कब्जा करने का सबसे बेहतर समय है।
अंग्रेजों ने गंगाधर राव की मृत्यु के बाद 27 फरवरी, 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तक पुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत करते हुए झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी।
ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और राजा गंगाधर राव के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया।
अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला उनके हवाले करने को कहा। रानी को झांसी का किला छोड़कर रानीमहल में जाना पड़ा।
रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर सेना का गठन प्रारम्भ किया और 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार कर ली।
इसमें महिलाओं को भी भर्ती करके उन्हें शस्त्र चलाने के साथ-साथ युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। लक्ष्मीबाई ने अपनी हमशक्ल झलकारी बाई को अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
ब्रितानी सेना ने 23 मार्च, 1858 को झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने 7 दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी सशस्त्र सेना के साथ डट कर मुकाबला किया।
30 मार्च को भारी बमबारी की मदद से अंग्रेज किले की दीवार में सेंध लगाने में सफल हो गए। दो हफ्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया।
परन्तु रानी पुत्र दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गई। रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तांत्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया।
17 जून, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर आखिरी जंग के लिए निकली।
18 जून, 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं। बड़ी शाला में स्थित एक झोंपड़ी को चिता का रूप देकर रानी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।