Rani Laxmi Bai Birthday: खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

Sunday, Nov 19, 2023 - 09:44 AM (IST)

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Rani Laxmi Bai Birthday:  रानी लक्ष्मीबाई का जन्म उतर प्रदेश के वाराणसी में 19 नवम्बर, 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी मां भागीरथी बाई सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थीं और पिता मोरोपंत तांबे एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे।

मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। सात साल की उम्र में ही घुड़सवारी सीख ली थी और इसके साथ ही मनु तलवार चलाने से लेकर धनुर्विद्या आदि में भी निपुण हो गई थी।

1850 में झांसी के महाराजा गंगाधर राव से मणिकर्णिका का विवाह हुआ तो वह झांसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। एक वर्ष बाद ही उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन चार माह पश्चात ही उस बालक का निधन हो गया। राजा गंगाधर राव को तो इतना गहरा धक्का पहुंचा कि वह फिर स्वस्थ न हो सके और 21 नवम्बर, 1853 को चल बसे। फिर भी वह घबराई नहीं, विवेक नहीं खोया। राजा गंगाधर राव ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार के बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानकर अंग्रेज सरकार को सूचना दे दी थी परंतु उनकी मृत्यु के बाद 27 फरवरी, 1854 को लॉर्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तक पुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत और झांसी को अंग्रेजी राज में मिलाने की घोषणा कर दी।

ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और राजा गंगाधर राव के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। रानी को झांसी का किला छोड़कर झांसी के रानीमहल में जाना पड़ा।

उसी समय आजादी के लिए प्रथम क्रांति की तिथि 31 मई, 1857 निश्चित की गई, लेकिन इससे पूर्व ही 7 मई, 1857 को मेरठ तथा 4 जून, 1857 को कानपुर में क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई। कानपुर तो 28 जून, 1857 को पूर्ण स्वतंत्र हो गया। अंग्रेजों के कमांडर सर ह्यूरोज ने अपनी सेना को सुसंगठित कर विद्रोह दबाने का प्रयत्न किया। उसने सागर, मदनपुर, वानपुर और तालबेहट पर अधिकार और नृशंसतापूर्ण अत्याचार करते हुए झांसी की ओर अपना कदम बढ़ाया। लक्ष्मीबाई पहले से ही सतर्क थीं। 23 मार्च, 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ। रानी लक्ष्मीबाई ने 7 दिन तक अपनी पीठ के पीछे अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को बांधकर घोड़े पर सवार हो अंग्रेजों का बहादुरी से मुकाबला किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया।

18 जून, 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ। रानी घायल हो गईं और अंतत: वीरगति प्राप्त की। रानी लक्ष्मीबाई ने स्वातंत्र्य युद्ध में अपने जीवन की अंतिम आहूति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया। वीरांगना लक्ष्मीबाई का जब अंतिम समय आया, तब ग्वालियर की भूमि पर स्थित गंगादास की बड़ी शाला में उन्होंने संतों से कहा कि कुछ ऐसा करो कि मेरा शरीर अंग्रेज न छू पाएं। इसके बाद रानी स्वर्ग सिधार गईं और बड़ी शाला में स्थित एक झोंपड़ी को चिता का रूप देकर रानी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

Prachi Sharma

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