इस स्थान से शुरू हुआ था श्री राम और रावण की दुश्मनी का सिलसिला

Thursday, Dec 27, 2018 - 04:00 PM (IST)

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हिंदू धर्म के ग्रंथों में वर्णित है कि जहां जहां भगवान के चरण पड़े वहां अनेक तरह की कथाएं आदि प्रचलित होने लगी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में भी यहीं कहा जाता है कि जहां जहां उनके चरण पड़े वहां उनसे जुड़ी कई मान्यताएं और कथाएं फैलती गई। कहते हैं पूरे भारत देश में ऐसी कई जगहें हैं जहां श्रीराम से जुड़े कुछ ऐसे चिन्ह आदि मिलते हैं, जिनके सच्चे होने का दावा किया जाता है। आज हम आपको इन्हीं से जुड़ी कुछ ऐसी निशानियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपने शायद आज से पहले कभी देखा-सुना नहीं होगा। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में-

आज तक आपने श्रीराम से जुड़े कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों के बारे में सुना होगा परंतु आज हम आपको एक ऐसे पर्वत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां श्रीराम ने मानसून की बारिश में 4 महीने के लिए शरण ली थी। कहा जाता है कि इस पर्वत पर आज के समय में भी ऐसी कई निशानियां देखने को मिलती हैं, जिसे देखकर कोई भी हैरान रह सकता है। इस जगह के बारे में ये भी मान्यता है कि श्रीराम ने इसी जगह पर दैवीय शस्त्रों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था और यहीं पर उन्हें ब्रह्मास्त्र भी हासिल हुआ था। साथ ही साथ ये भी कहा जाता है कि इसी जगह पर भगवान श्रीराम ने राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा ली थी। इस जगह के बारे में ये तक कहा जाता है कि यहीं देवी सीता ने अपने वनवास की पहली रसोई बनाई थी।

यहां के लोगों को कहना है कि अगर शाम के समय इस पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर जाया जाए तो इस समय यहां आकाश से एक दिव्य ज्योति (रोशनी) दिखाई पड़ती है। लोक मान्यता है कि इस ज्योति में श्रीराम का अक्स दिखाई देता है। इस जगह के बारे में न केवल लोक मान्यताएं प्रचलित हैं बल्कि वाल्मीकि रामायण में भी उल्लेख मिलता है कि जब श्रीराम, भ्राता लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ दंडकारिणी से पंचवटी की ओर बढ़ रहे थे तो अचानक से बारिश का मौसम हो गया। कहा जाता है कि मानसून बारिश के ये 4 महीने श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि के आश्रम में ही गुज़ारे थे, जहां से श्रीराम को रावण के बारे में पता चला था। इसके बाद श्री राम ने धरती से सारे राक्ष्सों को खत्म करने का प्रण लिया था। माना जाता है कि यहां यानि अगस्त्य ऋषि के पास 4 महीने रहकर अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान लिया था।

एक मान्यता ये भी है कि इसी स्थान पर श्री राम को अगस्त्य ऋषि से ब्रह्मास्त्र प्राप्त हुआ था, जिसकी मदद से भगवान राम ने रावण का वध किया था। बता दें कि इस स्थान को रामटेक के नाम से जाना जाता है। ये स्थान महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर से 20 मील की दूरी पर ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम अपने वनवास काल में यहां रूके थे, जिस वजह से इसे रामटेक कहा जाता है। चलिए सबसे पहले जानते हैं उस जगह के बारे में जिसके बारे में कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सीता ने वनवास के दौरान अपनी पहली रसोई बनाई थी। कहा जाता है कि इस जगह का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। यहां के निवासियों की मानें तो पद्मपुराण में एक अध्याय है, जिसे सिंदूरागिरि महात्मय कहा जाता है। इस सिंदरागिरि महात्मय में रामटेक का पूरा वर्णन पढ़ने-सुनने को मिलता है। इसमें किए उल्लेख की मानें तो श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहां के सभी ऋषि-मुनियों को भोजन कराया था। बता दें कि इसका निर्माण किसी प्रकार के कोई रेत-सीमेंट से नहीं बल्कि पत्थरों से किया गया है। इसमें भी सबसे चौकाने वाली बात ये है कि इन पत्थरों को जोड़ा नहीं गया कि बल्कि सिर्फ एक-दूसरे के ऊपर रखा हुआ है। परंतु हैरानी की बात ये है कि फिर भी सदियों से बने इस मंदिर का आज तक एक भी पत्थर गिरा नहीं है। बता दें कि इस मंदिर में एक तलाब है जिसके बारे में कहा जाता है कि साल भर इस तालाब के पानी का स्तर एक ही समान रहता है।

रामटेक मंदिर के रास्ते में एक और जगह का वर्णन मिलता है, जिसका संबंध महान कवि कालिदास से है। इस जगह को रामगिरि कहा जाता है। माना जाता है कि इसी जगह पर संस्कृत के कवि कालिदास ने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना मेघदूत यही लिखी थी। अगर आप मेघदूत पढ़ी हो तो आप देखेंगे कि इसमें रामगिरि का काफी ज़िक्र किया गया है। माना जाता है कि प्राचीन काल का रामगिरि ही आज के समय में रामटेक से जाना जाता है।

चलिए आप बात करते हैं उस अद्भुत मंदिर के बारे में जहां श्रीराम के अक्स होने की बात कही जाती है। ये मंदिर देखने में इतना भव्य है कि देखने में ये मंदिर कम किला ज्यादा लगता है। बता दें कि रामटेक का ये मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है, जिसे गढ़ मंदिर भी कहते हैं। आज के समय ये भव्य और अद्भुत मंदिर एक तीर्थ बन चुका है। लोग दूर-दूर से यहां श्रीराम के दर्शन करने आते हैं। पौराणिक इतिहास की मानें तो श्रीराम के इस धाम का आधुनिक रूप मराठा काल का है। कहा जाता है त्रेता युग में यहां केवल एक पहाड़ हुआ करता था जो पहले मराठों का गढ़ और फिर श्रीराम के मंदिर में तब्दील हो गया।

जैसे कि हमने आपको बताया, मान्यताओं के अनुसार यहां श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि से शस्त्र ज्ञान लिया था। कहा जाता है कि इसी मान्यता के चलते यहां के राजा यानि नागपुर के राजा रघु जी खोंसले ने इस किले का निर्माण करवाया। हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रथों में से रामायण के अनुसार ये धाम राम कथा का सबसे अहम पढ़ाव है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि यहीं श्रीराम को उनके वनवास आने का सही मकसद पता चला था। मान्यता है कि यहीं से श्रीराम और रावण के युद्ध की कहानी शुरू हुई थी, क्योंकि यहीं वो स्थान था जहां भगवान ने समस्त राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा ली थी।

इसके बारे में यहां के लोगों द्वारा एक मान्यता प्रचलित है जिसके अनुसार जब भगवान अपने वनवास के दौरान यहां आए। जब वे यहां पहुंचे तो उन्होंने अपने आस-पास हड्डियां का ढेर देखा। ये सब देखने के बाद उन्होंने अगस्त्य ऋषि से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये हड्डियां यहां के योगी ऋषि मुनियों की है। उन्होंने उन्हें बताया कि यज्ञ आदि जैसे धर्म आदि के कर्म करने में असुर यानि राक्ष्स हमेशा विघ्न डालते हैं। ये सब जानने के बाद श्रीराम जी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपना धनुष उठा कर ये प्रतिज्ञा ले ली कि मैं यहां के ऋषि मुनियों को असुरों का नाश करके अभय प्रदान करूंगा। कहा जाता है कि श्रीराम का अगस्त्य ऋषि से मिलन होना निश्चित था क्योंकि ऋषि का रावण से एक ऐसा रिश्ता था जिसके बारे में किसी को शायद ही पता हो। जी हां, आप में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये नहीं पता होगा कि असल में अगस्तय ऋषि रावण के चचरे भाई थे। कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने श्रीराम से यहां मुलाकात के दौरान उन्हें रावण के राज्य और उसके अत्याचारों के बारे में बताया था। इसके अलावा उन्होंने भगवान राम को ये भी बताया था कि रावण को किस तरह के शस्त्रों का ज्ञान था। रामायण में इस बात का उल्लेख भी किया गया कि ऋषि अगस्त्य ने ही भगवान राम को वो ब्रह्मास्त्र शस्त्र प्रदान किया था, जिससे उन्होंने रावण का वध किया था।

मंदिर से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार इस धाम या मंदिर की ज्योति में भगवान राम का अक्स देखने का दावा किया जाता है। लोक कथाओं के मुताबिक इस मंदिर के तार एक ऐसे तपस्वी से जुड़ें हैं, जिसका श्रीराम से गहरा संबंध माना जाता है। कहते हैं श्रीराम संबूक नामक एक साध्वी के निर्वाण के लिए यहां आए थे। जब वो यहां आए तो संबूक ने उनसे तीन वरदान मांग लिए। जिसमें से सबसे पहला था कि मेरे शरीर से शिवलिंग बने, दूसरा ये कि आप के यानि श्रीराम के दर्शन से पहले मेरे दर्शन हो और तीसरा कि आप ज्योति के रूप में हमेशा यहां उपस्थित रहे। यहां के लोगों का कहना है कि बारिश के दौरान जब यहां पर बिजली चमकती है तो यहां मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसे श्रीराम का अक्स माना जाता है। कहा जाता है श्रीराम स्वंय उस ज्योति के रूप में यहां प्रगट होते हैं। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें इस पवित्र और चमत्कारी ज्योति के दर्शन हुए हैं। परंतु उनका कहना है कि ये ज्योति कब दिखती है इसका कोई निर्धारित समय नहीं है।
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