अजब गजब: मुस्लिम देश की संस्कृति है रामायण

Saturday, Oct 05, 2019 - 12:43 PM (IST)

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आश्चर्य की बात यह है कि एक तरफ तो हिन्दू देश भारत में रामलीला के प्रति लोगों की उदासीनता नजर आती है जबकि वहीं मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में रामलीला की जबरदस्त धूम रहती है और दर्शकों में वहां रामलीला के प्रति काफी क्रेज रहता है। इंडोनेशिया में 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है और यह दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है। वहां सवा 22 करोड़ लोग रहते हैं। इसके बाद दूसरे नम्बर पर पाकिस्तान है, जहां की आबादी साढ़े 11 करोड़ है। इंडोनेशिया में रामायण का प्रवेश सातवीं सदी में हुआ था जो आज वहां की संस्कृति में रच-बस गया है। इस्लाम वहां बाद में आया। भले ही लोगों ने अपना धर्म परिवर्तन किया हो पर अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा। इस बारे में एक दिलचस्प किस्सा मशहूर है। 

राष्ट्रपति सुकर्णो के कार्यकाल में एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया गया था। वहां रामलीला का मंचन देखकर पाकिस्तानी हैरान रह गए। उन्होंने इस बारे में सुकर्णों से सवाल भी किया कि एक इस्लामी गणराज्य में रामलीला का मंचन क्यों और कैसे हो रहा है? इस पर सुकर्णो ने जवाब दिया कि ‘इस्लाम हमारा धर्म है और रामायण हमारी संस्कृति।’ जरा सोचिए कि दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी मुल्क अपनी संस्कृति को सहेजना जानता है और जिस देश में श्री राम का जन्म हुआ वहां की यू.पी.ए. सरकार ने 2007 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया था कि राम का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है और यह काल्पनिक पात्र है। जब देश में इस पर थू-थू हुई तो सरकार ने यू-टर्न ले लिया था।

एक करिश्मा शशि थरूर का है। थरूर ने कहा कि कोई भी सच्चा हिन्दू नहीं चाहता कि बाबरी की जगह पर राम का मंदिर बने। थरूर के इस बयान के बाद सियासी भूचाल आना ही था। नाराज सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो थरूर को नीच आदमी तक कह डाला। यह सब उस देश में हो रहा है जहां भगवान राम पैदा हुए और करोड़ों लोगों के आराध्य देव हैं। इस बारे में इंडोनेशिया के शिक्षा व संस्कृति मंत्री अनीस बास्वेदन का वह कथन महत्वपूर्ण है जब वह भारत आए थे। अनीस ने तब कहा था कि हमारी रामायण पूरी दुनिया में मशहूर है। हम चाहते हैं कि इसका मंचन करने वाले कलाकार भारत के अलग-अलग शहरों में साल में कम से कम 2 बार रामलीला का मंचन करें। यही नहीं अनीस ने भारतीय कलाकारों को भी इंडोनेशिया आकर रामलीला का मंचन करने का निमंत्रण भी दिया था। उनका कहना था कि भारत और इंडोनेशिया के कलाकार मिलकर एक ही मंच पर रामलीला का मंचन करें। यह दो संस्कृतियों के मेल का सुंदर रूप होगा, मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। राम पर राजनीति करने वाले मानो राम लला को बिसार चुके हैं। यह शर्म की ही बात कही जाएगी कि एक मुस्लिम देश में रामायण और रामलीला के प्रति इतनी जागरूकता है जबकि भारत में इस पर विवाद खड़ा किया जाता है।


 

Niyati Bhandari

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