विश्व के ये देश भी हैं रामायण के दीवाने

Monday, Feb 01, 2021 - 03:55 AM (IST)

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Ramayana: श्रीलंका और बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम ‘राम’ के नाम पर हैं। रामवती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था। अमरपुर के एक विहार में सीता-राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के चित्र आज तक अंकित हैं।

आजकल मेडागास्कर कहे जाने वाले द्वीप से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक के द्वीप समूह पर रावण का राज था। राम विजय के बाद इस सारे भू-भाग पर भगवान राम की कीरत फैल गई। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और वर्षों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।

मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर ‘राम-लक्ष्मण’ और ‘सीता’ नाम जोड़ते हैं। यहां रामायण को ‘हिकायत सेरीराम’ कहते हैं।

थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज करने की परम्परा है। वे सभी अपने को रामवंशी मानते थे। यहां अजुधिया, लवपुरी और जनकपुर जैसे नाम वाले शहर हैं। यहां पर राम कथा  को रामकीरत कहते हैं और मंदिरों में जगह-जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

कम्बोडिया में हिंदू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ-साथ रामायण का प्रचलन आज भी है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण-महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरुषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। रामायण के कई प्रसंगों के आधार पर वहां आज भी रात-रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में स्वर्ण-भूमि नाम दिया गया है। रामायण यहां के जन-जीवन में वैसे ही बसी है, जैसे भारतवासियों के।

बाली द्वीप भी थाईलैंड, जावा और सुमात्रा की तरह आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तम्भ है। रामायण का प्रचार यहां भी घर-घर में है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपाइन्स, चीन, जापान और प्राचीन अमरीका तक राम-कथा का प्रभाव मिलता है। मैक्सिको और मध्य अमरीका की ‘मय’ सभ्यता और ‘इंका’ सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है, उसमें रामायणकालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरू में राजा स्वयं को सूर्यवंशी ही नहीं ‘कौशल्यासुत राम वंशज’ भी मानते हैं। रामसीतव नाम से आज भी यहां राम-सीता उत्सव मनाया जाता है। 

Niyati Bhandari

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