...तो इसलिए हुए थे श्री राम और देवी सीता अलग?

Wednesday, Apr 22, 2020 - 10:06 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
लंका पर विजय पाकर तथा रावण का युद्ध में मारकर श्री राम अपनी भार्या देवी सीता को आज़ाद कर लाए थे। जिसके बाद में अपना वनवास काल पूरा होने के उपरांत वे अयोध्या लौट कर राजा की गद्दी पर बैठ गए थे। जिसके बाद श्री राम के सारी प्रजा तथा उनके भक्तों को लगने लगा था कि अब श्री राम के जीवन के कठिन समय का हमेशा हमेशा के लिए अंत हो गया है। परंतु क्या सच में ऐसा हुआ था? नहीं क्योंकि उसके बाद तो श्री राम और देवी सीता के जीवन में ऐसा कुछ घटित हुआ था जिसका उस समय में किसी को अंदाज़ा तक नहीं था।

शायद आप में से कुछ लोग ये समझ गए होंगे कि हम देवी सीता का श्री राम के महल छोड़ कर जंगल में वनवासियों जैसा जीवन व्यतीत करने के बारे में बात कर रहे हैं। जी हां, आप सही समझ रहे हैं, पहले अपनी पवित्रता का प्रमाण देने के लिए अग्नि परीक्षा तो बाद में राज महल से निकाल दिया जाना। देवी सीता ने अपने जीवन काल में बहुत से कठिन परस्थितियों का सामना किया, उन्होंने अकेले ही अपने पुत्रों का पालन-पोषण किया। मगर आज भी आप में से बहुत से लोग होंगे जो ये जानने के इच्छुक हैं कि आख़िर क्यों श्री राम ने अपनी पत्नी देवी सीता को छोड़ा, क्योंकि शास्त्रों में उनके और देवी सीता के संबंधों को बहुत ही मधुर दर्शाया गया है। तो आखिर ऐसा क्या कारण था कि देवी सीता ने अपनी पत्नी देवी सीता जिनके लिए उन्होंने रावण का नामों निशान मिटा दिया उनका ही त्याग कर दिया। चलिए आइए जानते हैं-

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला तो वे अकेले ही वनवास पर जाना चाहते थे। लेकिन माता सीता ने उनके साथ चलने का निर्णय लिया। बता दें शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार माता सीता का ये स्वतंत्र निर्णय था, कैकयी ने केवल श्री राम को वनवास भेजना चाहा था।

वनवास काल के आख़िर के वर्षों के दौरान रावण द्वारा माता सीता का अपहरण कर लिया गया था। यही मूल कारण था कि भगवान श्रीराम ने लंका की चढ़ाई की और रावण का वध किया।

शास्त्रों के अनुसार जब श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या वापस आए तो कुछ दिनों बाद श्रीराम के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि उनकी ही प्रजा में कुछ लोग माता सीता की पवित्रता पर संदेह कर रहे हैं। 

जबकि माता सीता ने रावण के राज्य से लौटकर आ कर अग्नि परीक्षा भी दी थी। परंतु इसके बावज़ूद माता सीता की पवित्रता पर सवाल उठाए जाने लगे।

शास्त्रों के अनुसार तब प्रभु श्रीराम को पिता दशरथ द्वारा सिखाया गया राजधर्म याद आ गया। जिसमें राजा दशरथ ने उन्हें सिखाया था कि  एक राजा का अपना कुछ नहीं होता, सबकुछ राज्य का ही होता है। बल्कि आवश्यकता पड़ने पर अगर राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री, संतान, मित्र यहां तक की प्राण भी त्यागने पड़े तो उसमें संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि राजा के लिए उसका राज्य ही उसका मित्र है तथा उसका परिवार होता है। प्रजा की भलाई ही उसका स्रर्वोपरि धर्म है।

तो असल में ये कारण था कि भगवान श्रीराम ने माता सीता को छोड़ने का मन बना लिया। ऐसा करने के पीछे उनका एक ही कारण था, जो था अपने राजधर्म का पालन करना। शास्त्रों के अनुसार देवी सीता जब गर्भवती थीं तब उनकी एक दिन तपोवन घूमने की इच्छा हुई, जो इच्छा उन्होंने श्री राम से व्यक्त की।

जिसके बाद श्रीराम ने भाई लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार लक्ष्मण जी ने तपोवन में पहुंचकर अत्यंत दुखी मन से देवी सीता से कहा- 'माते, मैं, आपको अब यहां से वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि यही महाराज की आज्ञा है।
 

Jyoti

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