रामायण: संसार में अशांति क्यों?

Wednesday, Mar 24, 2021 - 12:26 PM (IST)

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रामायण में उल्लेख किया गया है कि-
जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार।।

जड़ चेतन में गुण-दोष दोनों ही उपस्थित हैं पर हंस की विशेषता यह है कि वह केवल सार वस्तु को ही ग्रहण करता है। भारतीय संस्कृति ने अनेक महामानव विश्व को दिए, जिन्होंने शांति का संदेश मानव समाज को दिया। दसों बादशाह, बड़े-बड़े पीर-पैगम्बरों, अवतारों को हमारी संस्कृति ने प्रकट किया। यह हमारे लिए बड़े गौरव की बात है परन्तु हमें वह भी समझना चाहिए कि वास्तविक शांति क्या है? जिसके अनुभव से हमारे संतों ने यह कहा है कि-

सिया राम मय सब जग जानी,
करऊं प्रणाम जोरि जुग पाणी।
सिया राम सारे जग में ओत-प्रोत हैं?

आज संसार में कितनी अशांति और मारधाड़ है। यह क्या है? जब मन में शांति होती है, मन एकाग्र होता है, उसी का परिणाम है कि हम सब यहां शांति से बैठे हैं। अगर मानव को अध्यात्म ज्ञान मिले तो मानव शांत होगा, समाज शांत होगा, देश शांत होगा, उससे पूरी दुनिया शांत होगी। आज मनुष्य ने अध्यात्म को नहीं समझा। संतों, महापुरुषों को नहीं पहचाना, इसीलिए आज हर तरफ अशांति है। हमें हंस बनना होगा।

संतों ने उस शक्ति को ‘हंस’ कहकर संबोधित किया है। हंस का अर्थ होता है आत्मा। हंस का अर्थ होता है मानसरोवर में विचरण करने वाला हंस जिनके सामने दूध में पानी मिलाकर रखा जाए तो वह केवल दूध को ग्रहण कर लेता है और पानी को छोड़ देता है अर्थात सार को ग्रहण करना और असार को छोड़ देना ही केवल हंस की विशेषता है। वास्तविक शांति प्राप्ति के लिए हर मनुष्य को हंस बनना होगा, तब अशांति लाख खोजने पर भी नहीं मिलेगी। —पंडित शशि मोहन बहल

Jyoti

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