Rama Raghoba Rane death anniversary: वीर से परमवीर बने लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को शत-शत नमन

Tuesday, Jul 11, 2023 - 08:58 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Param Vir Chakra Rama Raghoba Rane: सेकंड लेफ्टनंट राम राघोबा राणे देश के पहले फौजी थे जिन्हें जीवित रहते हुए उनके शौर्य, साहस और पराक्रम के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 26 जून, 1918 को कर्नाटक के करवार जिले में हावेरी गांव में इनका जन्म हुआ। 1940 में 22 वर्षीय राम राघोबा राणे ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी ज्वाइन की। द्वितीय विश्व युद्ध में इनकी वीरता देखने को मिली, जब इन्होंने बर्मा की सीमा पर जापानियों को पस्त कर दिया। 15 दिसंबर, 1947 को भारतीय सेना के कोर ऑफ इंजीनियर्स की बॉम्बे सैपर्स रेजिमेंट में नियुक्त किए गए। 

1948 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की तरफ से हुए कबीलाई हमले में साहस और पराक्रम से यह वीर से परमवीर हो गए। नौशेरा सेक्टर के झांगर को भारतीय सेनाओं ने वापस हासिल कर लिया लेकिन अब उसके आगे राजौरी पोस्ट हासिल करनी थी। 8 अप्रैल, 1948 को चौथी डोगरा बटालियन राजौरी की तरफ आगे बढ़ी और अपनी बहादुरी से बटालियन ने नौशेरा से 11 किलोमीटर दूर बरवाली रिज से पाकिस्तानियों को भगाकर उस पर कब्जा किया लेकिन आगे रास्ते में बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं, जिस कारण सैनिक और टैंक आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। तब 37वीं असॉल्ट फील्ड कंपनी के एक सेक्शन के कमांडर राम राघोबा राणे डोगरा रेजिमेंट की मदद के लिए आए। 

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

राणे अपनी टीम के साथ रास्ते से बारूदी सुरंगें हटाने लगे। दुश्मन ने इन पर गोलियों की बौछार और मोर्टार दागे जिसमें राणे के दो साथी शहीद और राणे सहित 5 ज मी हो गए लेकिन वह रुके नहीं और जवाबी हमला करते हुए बारूदी सुरंगें शाम तक हटा दीं, जिससे टैंकों को आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया। 
राणे ने रात भर टैंकों के लिए रास्ता बनाया, अगले दिन फिर उनके सेक्शन ने लगातार 12 घंटे काम किया और बारूदी सुरंगें हटाकर रास्ता बनाते रहे और डोगरा रेजिमेंट और टैंक पाकिस्तानियों को करारा जवाब देते रहे लेकिन पाकिस्तानी ऊंचाई पर बैठकर सड़क पर सीधे हमला कर रहे थे, तब राम राघोबा राणे ने एक टैंक के पीछे छिपकर रोड ब्लॉक को ब्लास्ट करके हटाया। 

अगले दिन 11 अप्रैल को राणे और उनकी टीम ने फिर 17 घंटे काम किया। अब ये लोग चिंगास तक पहुंच गए थे, यानी नौशेरा और राजौरी का मिड-वे। 8 से 11 अप्रैल के बीच कई बाधाओं और खनन क्षेत्रों को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारतीय सेना द्वारा राजौरी का कब्जा कर उनके कार्यों ने भारतीय टैंकों को आगे बढ़ाने के लिए रास्ता साफ करने में मदद की। इस दौरान 500 से ज्यादा पाकिस्तानी मारे गए। 

3 दिन भूखे-प्यासे रह कर दुश्मन के हमले के बावजूद दिखाई बहादुरी के लिए पहले जीवित भारतीय फौजी के रूप में इन्हें 21 जून, 1950 को परमवीर चक्र से नवाजा गया। 25 जनवरी, 1968 को वह मेजर के पद से रिटायर हुए और 11 जुलाई, 1994 को 76 वर्ष की आयु में इस बहादुर सैनिक का निधन हो गया।



 

Niyati Bhandari

Advertising