Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: ‘दयानंद सरस्वती’ से प्रेरित महान क्रांतिकारी ‘रामप्रसाद बिस्मिल’

Sunday, Jun 11, 2023 - 08:42 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

‘‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है,
वक्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमां, हम अभी से क्यूं बताएं, क्या हमारे दिल में है।’’

Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: ओज और जोश से भरी इन पंक्तियों ने मातृभूमि के दीवाने हजारों नौजवानों को देश की स्वतंत्रता के लिए न्यौछावर होने की प्रेरणा दी। महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी अपना सर्वस्व राष्ट्र के लिए न्यौछावर कर दिया और सदा के लिए भारतवासियों को ऋणी बना गए। रामप्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। 

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वह राम और अज्ञात  के नाम से भी लेख व कविताएं लिखते थे। रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में बेहद साधारण कृषक परिवार में हुआ और 30 वर्ष की आयु में ही 1927 में वह शहीद हुए।  उनके पिता का नाम मुरलीधर और मां का नाम मूलमती था। 

बालक की जन्मकुंडली व दोनों हाथों की दसों उंगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी, ‘‘यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि संभावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी।’’ 

रामप्रसाद बिस्मिल की प्रारंभिक शिक्षा पिता के सानिध्य में घर पर हुई। बाद में उर्दू पढ़ने के लिए वह एक मौलवी साहब के पास गए। अंग्रेजी में उन्होंने 8वीं कक्षा उत्तीर्ण की। जब वह 9वीं कक्षा में थे, तब आर्य समाज के संपर्क में आए। स्वामी दयानंद सरस्वती की रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़कर उनमें काफी परिवर्तन आया। उन्हें वैदिक धर्म को जानने का अवसर प्राप्त हुआ, उनके जीवन में नए विचारों और विश्वासों का जन्म हुआ। उन्हें सत्य, संयम, ब्रह्मचर्य का महत्व आदि समझ में आया। रामप्रसाद बिस्मिल ने अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का प्रण किया, जिसके लिए अपनी पूरी जीवनचर्या ही बदल डाली। 

रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन पर सबसे अधिक उनकी मां का प्रभाव पड़ा। उनकी माता मूलमती यूं तो अशिक्षित थीं, पर विवाहोपरांत उन्होंने प्रयत्न से हिंदी पढ़ना सीख लिया। वह एक अत्यंत धार्मिक, सदाचारी, कर्त्तव्यपरायणऔर देशभक्त महिला थीं। 

रामप्रसाद बिस्मिल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘‘यदि मुझे ऐसी माता न मिलती, तो मैं भी अतिसाधारण मनुष्यों की भांति, संसार चक्र में फंसकर जीवन निर्वाह करता।’’ 

आर्य समाजी देशभक्त भाई परमानंद की गिरफ्तारी और फांसी की सजा होने की खबर ने रामप्रसाद बिस्मिल को झकझोर दिया। उनके भीतर स्वतंत्रता की ज्वाला भड़क उठी। उन्होंने विदेशी ताकत को उखाड़ फैंकने का निश्चय कर लिया। मैनपुरी षड्यंत्र केस के प्रसिद्ध क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित से बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। बिस्मिल व दीक्षित दोनों ने मैनपुरी, इटावा, आगरा व शाहजहांपुर आदि जिलों में गुपचुप अभियान चलाया और युवकों को देश की आन पर मर-मिटने के लिए संगठित किया। इन्हीं दिनों उन्होंने एक पत्र ‘देशवासियों के नाम संदेश’ प्रकाशित किया। 

स्वतंत्रता संग्राम इतिहास में काकोरी की घटना बेहद महत्वपूर्ण है। क्रांतिकारियों का उद्देश्य ट्रेन से शासकीय खजाना लूटकर, उन पैसों से हथियार खरीदना था, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके। राम प्रसाद बिस्मिल 9 अगस्त, 1925 को साथियों सहित डाऊन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर पर शाहजहांपुर में सवार हुए। चेन खींचकर रेलगाड़ी को रोका गया और खजाना लूटा गया। 

इस कार्य में उनके साथ अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुंदी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल शामिल थे। काकोरी कांड के बाद देशभर से 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 26 सितंबर, 1925 को बिस्मिल भी गिरफ्तार कर लिए गए। महीनों तक मुकद्दमा चला। अंतत: उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। देश की स्वतंत्रता के लिए वीर रामप्रसाद बिस्मिल ने 19 दिसंबर, 1927 को फांसी के फंदे को चूम लिया। 

जब उनकी शहीदी की सूचना उनकी मां को मिली, तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु पर प्रसन्न हूं, दु:खी नहीं। मैं श्री रामचन्द्र जैसा ही पुत्र चाहती थी। वैसा ही मेरा राम था। बोलो श्री रामचंद्र की जय!’’ 

रामप्रसाद बिस्मिल बेहतरीन रचनाकार थे। बेहद प्रसिद्ध ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ नामक गीत उन्होंने ही लिखा था। बिस्मिल की फांसी के चंद दिनों बाद ही अशफाक उल्ला खां को भी फांसी दे दी गई। देशभक्तों की ये दोस्ती सांप्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा उदाहरण बन गई।     

            


 

Niyati Bhandari

Advertising