Ram Navami 2020: शुभ मुहूर्त के साथ पढ़ें राम कथा

Thursday, Apr 02, 2020 - 06:46 AM (IST)

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आज भगवान श्रीराम का जन्मदिन है। हिंदू पंचांग के अनुसार राम नवमी हर साल चैत्र माह की शुक्‍ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाए जाने का विधान है। ग्रेगोरियन कैलेंडर की मान्यता के अनुसार ये त्योहार हर साल मार्च या अप्रैल महीने में आता है। आज 2 अप्रैल को ये शुभ दिन आया है।

राम नवमी का शुभ मुहूर्त
नवमी तिथि का प्रारंभ : 2 अप्रैल की सुबह 3:40 से हो चुका है। अब इसका समापन 3 अप्रैल की प्रात: सुबह 2:43 पर होगा।
राम नवमी मुहूर्त: 2 अप्रैल की सुबह 11:10 मिनट से दोपहर 1:40 तक रहेगा।

किसी कालखंड में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा राम मंदिर को तोडऩा और उसके स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करना एक धृष्टता और अक्षम्य अपराध था। आर्य समाज की दृष्टि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एक ऐतिहासिक महापुरुष हैं, भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जीवन प्रत्येक भारतवासी के लिए अनुकरणीय है। राम का जीवन हर दृष्टि से पूर्ण जीवन है। शारीरिक, आत्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति तथा उत्कर्ष का ढंग हम राम के जीवन चरित्र को पढ़ कर तथा मनन कर सीख सकते हैं। सुख में, दुख में, हर्ष और विषाद में, मान और अपमान में राम धृतिशील बने रहे।

भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु कुल में राजा दशरथ के यहां हुआ था। राम अपने समय में अपनी गुण गरिमा से, आदर्श जीवन चरित्र से, उदार भावनाओं से समस्त अयोध्यावासियों के लिए एक सर्वोत्कृष्ट पथ प्रदर्शक सिद्ध हुए थे और इसी आधार पर वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। भारतीय ऐतिहासिक परम्परा में प्राचीनतम लोक मर्यादा को सर्वथा अक्षुण्ण रखने में सूर्य कुल का उन्नायक, धर्म धुरंधर, महापराक्रमी, नीति निपुण, सत्य प्रतिज्ञ, दृढ़व्रती, कार्यम वा साधेययं देहं वा पातयेयम् के धनी भगवान राम का सम्पूर्ण जीवन अनुकरणीय है।

भगवान राम के गुणों का वर्णन करते हुए भगवान वाल्मीकि ने बालकांड और अयोध्याकांड में जिस सुंदरता से वर्णन किया है वह अनुपम है। राम गंभीरता में समुद्र के समान हैं। धैर्य में पर्वतराज हिमालय के सदृश हैं। जिस प्रकार की प्रेरणा हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से मिलती है उतनी किसी अन्य के जीवन से नहीं। भगवान राम को आदि कवि ने आर्य उपाधि से विभूषित किया है- आर्य: सर्व समश्चैव सदैव प्रियदर्शन:।

राम की एक और अभूतपूर्व विशेषता यह है कि- कदाचिदुपकारेणकृतेनैकेनैव तुष्यति। न स्मरत्यपकाराणां शतमप्यात्मवत्तया।।
अर्थात् वे लोगों के द्वारा किए गए एक ही उपकार से संतुष्ट हो जाते थे परंतु सैंकड़ों किए अपकारों को कभी भी स्मरण नहीं करते थे। महाकवि ने त्रेता युग के आदर्श युवक का कितना सुंदर चरित्र प्रस्तुत किया है जो प्रत्येक मानव के लिए सर्वदा अनुकरणीय एवं उपादेय है। श्रीराम की एक अन्य विशेषता यह भी है कि जिस प्रकार सूर्य उदय एवं अस्त के समय एक ही वर्ण का रहता है उसे कोई हर्ष, दु:ख अथवा उद्वेग नहीं होता, उसी प्रकार महापुरुष भी दुख में सुख में समान रहते हैं।

भारतीय आदर्शों का पूर्ण परिपाक हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम में देखने को मिलता है। श्री राम ने अपने गुण, कर्म एवं स्वभाव से मानव की परिपूर्ण छवि हमारे सामने प्रस्तुत की है। प्रजा की प्रसन्नता के लिए वे बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार रहते थे। अन्याय और अत्याचार का प्रतिकार करने के लिए वे सदा आगे रहते थे। अत्यंत सौम्य और मृदु स्वभाव वाले राम अवसर आने पर अत्यंत कठोर भी बन जाते हैं। उत्तररामचरित के रचयिता भवभूति के शब्दों में- वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि।

वज्र से भी कठोर तथा पुष्प से भी कोमल राम का लोकोत्तर चरित्र समझना सामान्य बुद्धि के व्यक्ति के लिए संभव ही नहीं है। जीवन के आरंभिक काल में हमें उन्हें माता-पिता, गुरु आदि पूजनीय व्यक्तियों की आज्ञा पालन में तत्पर देखते हैं। कर्तव्य पालन में उनकी तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती। जनकपुरी में शिव धनुष भंग के समय उनकी शक्तिमत्ता, धैर्य, गाम्भीर्य का परिचय मिलता है। माता-पिता की आज्ञा का पालन उन्हें अत्यंत प्रिय था। इसलिए वे राज्याभिषेक के आनंदजन्य अवसर को छोड़कर वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं। राज्यारोहण के लिए बुलाए जाने और थोड़ी देर के बाद वनवास के आदेश मिलने पर भी राम की मुखाकृति में थोड़ा भी विकार नहीं आया। सुख-दुख, हानि-लाभ तथा ङ्क्षनदा स्तुति में समत्व बुद्धि रखने वाले ऐसे महापुरुषों को ही स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।

भारतीय परिवार के आदर्शों को रामायण के पात्रों में जीवंत रूप से देखा जा सकता है। यहां भी राम ही अन्य पात्रों में आदर्श मर्यादा तथा कत्र्तव्य पालन का भाव जागृत करने में दत्तचित्त दिखाई देते हैं। अपने भाईयों के लिए उनका स्नेह और वात्सल्य समय-समय पर प्रकट होता है। सीता के प्रति उनका अनन्य प्रेम और अनुराग एक आदर्श पति की मर्यादा स्थापित कर एक पत्नीव्रत की गरिमा प्रतिष्ठित करता है। इसी प्रकार गुरु-शिष्य संबंध, स्वामी सेवक संबंध, मित्रों का पारस्परिक सौहार्द भाव, यहां तक कि शत्रु के प्रति भी न्यायपूर्ण आचरण का दृष्टांत राम के चरित्र में दृष्टिगोचर होता है। महॢष वाल्मीकि ने राम के इसी सर्वगुणान्वित चरित्र को ध्यान में रखकर उन्हें धर्म का विग्रहवान् रूप कहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम प्रत्येक भारतीय की दृष्टि में आदर भाव के प्रतीक हैं, भारतीय संस्कृति के प्राण हैं।

Niyati Bhandari

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