Raksha Bandhan Special: पढ़ें, रक्षा बंधन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

Wednesday, Aug 30, 2023 - 07:43 AM (IST)

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Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन श्रावणी पावस ऋतु का मुख्य त्यौहार है, जिसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावणी पर्व के दो पक्ष हैं, जिन्हें बौद्धिक और लौकिक कहा जाता है। लौकिक पक्ष को ही रक्षाबंधन के रूप में माना जाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा के ही दिन वेदों का अवतार हुआ था। इसी रोज से वेदों का अध्ययन आरंभ किया गया था, इसी संस्कार को श्रावणी का उपक्रम कहते हैं।

श्रावण पर्व के ही दिन रक्षाबंधन का लोक मंगल मूलक कार्य होता है, जिसे राखी कहा जाता है। इस दिन पुरुषों के दाहिने हाथ पर राखी बांधने की परंपरा है। हालांकि यह प्रथा कब प्रारंभ हुई, यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन फिर भी कुछ पौराणिक व ऐतिहासिक घटनाएं इससे जुड़ी हुई हैं। विवाह, यज्ञ, नवरात्रि कथा व घरों में शुभ कार्य उत्सवों पर दाहिने हाथ में सूत्र बांधा जाता है, उसका रक्षा बंधन से ही संबंध है।



मंगल कार्यों पर भी सूत्र का विशेष महत्व माना गया है। रक्षाबंधन हमारे देश में कई प्रदेशों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा के एक-दो सप्ताह पूर्व ही बाजारों में रंग-बिरंगी व तरह-तरह के डिजाइनों की राखियां बिकनी शुरू हो जाती हैं। रक्षाबंधन का पर्व पारिवारिक मंगल कामना का प्रतीक भी माना गया है। यह पर्व भाई-बहन के बीच पवित्र स्नेह का द्योतक भी है। भाई इस दिन बहन के हाथों से स्नेहपूर्वक राखी बंधवाकर जहां उसे भेंट स्वरूप कुछ रुपए अथवा उपहार देते हैं, वहीं उसकी रक्षा का भी वचन देते हैं। कन्याएं सदैव भाई के कल्याण की भावनाएं दिल में संजोकर ही इस पर्व को खुशी-खुशी मनाती हैं।

Story related to Raksha Bandhan रक्षाबंधन से जुड़ी कथा
रक्षाबंधन के पर्व के महत्व के संबंध में कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। किंवदंती है कि जब देव-दानवों में 12 वर्ष तक युद्ध चलता रहा तो भी कोई परिणाम न निकला व इंद्र व गुरु बृहस्पति भी चिंतित हो उठे तो इंद्र की पत्नी शुचि ने अपने पति को परेशान देख उन्हें उत्साहित करते हुए कहा, मैं आपकी जीत के लिए प्रयत्न करूंगी। उस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चौदस थी।

दूसरे दिन प्रात:काल होते ही इंद्र की पत्नी शचि ने गुरु बृहस्पति की अनुमति से यज्ञ किया व उसकी समाप्ति पर उन्होंने अपने पति इंद्र की दाईं कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा, तत्पश्चात युद्ध में देवराज इंद्र की विजय हुई। कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ता रक्षाबंधन से ही जन्मा। हुमायूं ने जिस प्रकार अपनी बहन कर्मावती की रक्षा की उससे भी रक्षाबंधन को बल मिलता है।



Rakhi is tied on the hands of husbands in South India दक्षिण भारत में पतियों के हाथ पर बांधी जाती है राखी
रक्षाबंधन का पर्व जहां हमारी विजय कामना का पर्व है, वहीं प्राचीन काल में शिष्य अपने गुरुओं को इस दिन हाथ में सूत का धागा बांधकर उनसे शिक्षा ग्रहण करने का भी संकल्प लेते थे। राखी का पर्व कई तरीकों से मनाते हैं व अलग-अलग प्रचलन भी इससे जुड़े हुए हैं। दक्षिण भारत में औरतें राखी के दिन अपने पतियों के हाथ पर राखी बांधती हैं व जिसकी स्त्री नहीं होती या जो अविवाहित हैं, वे अपनी माता या बहन से राखी बंधवा लेते हैं।



This festival has special importance in Rajputs राजपूतों में है इस पर्व का विशेष महत्व
पुराने जमाने में वेदों का संपूर्ण अध्ययन करने के लिए श्रावण मास को ही शुभ माना जाता था। राजपूतों में तो इस पर्व का विशेष महत्व है। युद्ध के दौरान क्षत्राणियों द्वारा क्षत्रियों के हाथों पर राखी बांधकर विजयी होने की कामना की जाती थी, जो जग प्रसिद्ध है। कुल पुरोहित भी यजमानों की कलाई पर रक्षित सूत्र बांधते हुए कहते थे, जिस रक्षा सूत्र से दानवों का शक्तिशाली राजा बलि बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधता हूं। श्रावण के दिन भी यही आशीर्वाद आमतौर पर दिया जाता है।

हालांकि राखी जैसे पवित्र त्यौहार का स्वरूप अब बदलता जा रहा है व इसके प्रति पहले जैसी सद्भावनाओं का स्थान लालची प्रवृत्ति ने ले लिया है, जिससे अब यह प्रेम का त्यौहार न होकर लेन-देन में ही सिमटता जा रहा है जिससे इस त्यौहार की पवित्रता पर आंच आ रही है। बढ़ती महंगाई ने भी इस त्यौहार को सीमित कर दिया है लेकिन फिर भी इस त्यौहार के प्रति हर वर्ग में श्रद्धा है क्योंकि जन कल्याण की भावनाओं से जुड़ा राखी का त्यौहार व इसके कोमल व पवित्र धागे हमें सदैव अपने दायित्वों को पूरा करने की प्रेरणा भी देते हैं।  

 

Niyati Bhandari

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