इस रहस्यमय शिला पर पिंडदान करने से मिलेगी पूर्वजों को मुक्ति

Friday, Sep 13, 2019 - 12:25 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे हिंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व होता है। कहते हैं कि पितरों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए श्राद्ध करना आवश्यक होता है। इन्हीं परंपराओं के चलते 16 दिनों तक चलने वाले इस पक्ष में हर कोई अपने पूर्वजो का पिंडदान करता है। कहते हैं अगर कोई ऐसा नहीं करता तो पितरों के साथ-साथ समस्त देवता गण भी मनुष्य से नाराज़ हो जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इस बात का वर्णन भी किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देवता की पूजा करने से पहले अपने पूवर्जों का ध्यान करना चाहिए अन्यथा पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिलता।

बता दें कि देशभर में पींडदान के कई स्थान हैं, किंतु पिंडदान करने के लिए ज्यादातार लोग गया जी जाते हैं। वहीं आज हम बात करेंगे पटना से करीब 104 किमी की दूरी पर स्थित गया जी के पास एक बहुत ही प्राचिन व रहस्यों से भरी के प्रेतशिला के बारे में।

धार्मिक मान्यता के अनुसार गया में श्राद्ध, पिंडदान आदि से मृत व्यक्ति की आत्मा को मृत्युलोक से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन आज जिसके बारे में हम बताने जा रहे हैं, वह प्रेतशीला बहुत ही प्राचीन है और जिसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। माना जाता है की यहीं से पितृ श्राद्ध पक्ष में आते हैं और पिंड ग्रहण कर फिर यहीं से परलोक चले जाते हैं। तो चलिए जानते हैं उस शिला से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में। 

गया के पास प्रेतशिला नाम का 876 फीट ऊंचा एक पर्वत है। इस रहस्यमय पर्वत प्रेतशिला के बारे में कहा जाता है कि यहां पूर्वजों के श्राद्ध व पिंडदान का बहुत अधिक महत्व है। मान्‍यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण कर लेते हैं और उन्हें कष्टदायी योनियों में जन्म भी नहीं लेना पड़ता। यह लोक और परलोक के बीच की एक ऐसी कड़ी है जो दुनिया में रहस्य पैदा करती है। बताया जाता है कि प्रेतशीला के पास के पत्थरों में एक विशेष प्रकार की दरारें और छेद हैं। जिनके माध्यम से पितृ आकर पिंडदान ग्रहण करते हैं और वहीं से वापस चले जाते हैं। इस पर्वत से श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता का भी नाम जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि यहां उन्होंने श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। पर्वत पर ब्रहमा के अंगूठे से खींची गयी दो रेखाएं भी बहुत दिनों तक देखी जा सकती थी। वही ऊपर में यमराज का मंदिर, राम परिवार देवालय के साथ श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के लिये दो कक्ष बने हुए हैं। पर्वत के उपर चढ़ने के लिये सीढियां बनी हुई है। साथ ही जो लोग चढ़ने में असमर्थ हैं वो गोदी वाला अथवा पालकी वाले का सहारा लेकर ऊपर जाते हैं।

सूर्यास्‍त के बाद ये आत्‍माएं विशेष प्रकार की ध्‍वनि, छाया या फिर किसी और प्रकार से अपने होने का अहसास कराती हैं। ये बातें यहां आस्‍था और विज्ञान से जुड़ी बातों पर आधारित हैं। न ही इन्‍हें झुठलाया जा सकता है और न ही इन्‍हें सर्वसत्‍य माना जा सकता है। प्रेतशिला के पास एक वेदी है जिस पर भगवान विष्णु के पैरों के चिह्न बने हुए हैं। इसके पीछे की एक प्रमुख कथा बताई गई है जिसके अनुसार यहां गयासुर की पीठ पर बड़ी सी शिला रखकर भगवान विष्‍णु स्‍वयं खड़े हुए थे। बताया जाता है कि गयासुर ने ही भगवान से यह वरदान पाया था कि यहां पर मृत्यु होने पर जीवों को नरक नहीं जाना पड़ेगा। गयासुर को प्राप्त वरदान के कारण से ही यहां पर श्राद्ध और पिंडदान करने से आत्मा को मुक्ति मिल जाती है।

Lata

Advertising