Prerak Prasang: ये प्रेरक कथाएं बदल सकती हैं आपका जीवन

Thursday, Mar 03, 2022 - 10:57 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

‘परिश्रम’ का धन 
आचार्य कांभोज की पुत्रि निश्चला विदुषी एवं सुसंस्कारित थी। उसके रूप की चर्चा दूर-दूर तक थी। राज्य का राजकुमार भूरिश्रवा उसका हाथ मांगने पहुंचा। राजकुमार के प्रणय-प्रस्ताव पर निश्चला ने उत्तर दिया, ‘‘राजकुमार! मैं परिश्रम से उपार्जित धन से जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखती हूं। प्रजा से लिया गया धन राजकोष में रहे, पर सादा जीवन व्यतीत करें, तभी मैं आपकी जीवनसंगिनी बन पाऊंगी।’’

भूरिश्रवा भी धर्मनिष्ठ राजकुमार था। उसने निश्चला का यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया। दोनों ने राजमहल का त्याग कर झोंपड़ी में रहना अंगीकार किया। 

राजकुमार राजकार्य को एक देवप्रदत्त दायित्व की तरह निभाते और दोनों पति-पत्नी स्वअर्जित धन से घर का कार्य चलाते। ऐसा जीवन जीने से दोनों की र्कीत इतनी बढ़ी कि वे आज भी याद किए जाते हैं।

‘साधक’ दो प्रकार के
महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि साधक दो प्रकार के होते हैं, ‘एक बंदर के बच्चे जैसे और दूसरे बिल्ली के बच्चे जैसे।’ 

बंदर का बच्चा स्वयं ही मां को पकड़े रहता है तो इसी तरह कुछ साधक सोचते हैं कि हमें इतना जप करना चाहिए , इतनी देर तक ध्यान करना चाहिए, इतनी तपस्या करनी चाहिए तब ही ईश्वर मिलेंगे। 

पर बिल्ली का बच्चा खुद अपनी मां को नहीं पकड़ता। वह तो बस पड़ा हुआ मीऊं-मीऊं करके मां को पुकारता है और उसकी मां उसे जहां चाहे रख दे। 

इसी तरह कोई भी साधक स्वयं हिसाब करके साधन-भजन नहीं कर सकता कि इतना जप करूंगा, इतना ध्यान करूंगा। वह केवल व्याकुल हो कर रो-रोकर उन्हें पुकारता है। उसका रोना सुनकर ईश्वर फिर नहीं रह सकते और वह उसे दर्शन दे ही देते हैं।

Niyati Bhandari

Advertising