इस विधि से करेंगे मंत्र जाप तो मिलेगा अद्भुत लाभ

Saturday, Jun 13, 2020 - 04:01 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की कृपा पाने के लिए पूजन विधि तो ज़रूरी है ही, मगर कहा जाता है मंत्र आदि का उच्चारण करना भी अनिवार्य होता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार हर दिन के हिसाब से शास्त्रों में मंत्र बताए गए हैं। देवी लक्ष्मी की बात करें तो इन्हें तो प्रत्येक व्यक्ति खुश करना चाहता है क्योंकि शास्त्रों में इन्हें धन की देवी बताया गया है। इसलिए हर कोई चाहता है इनकी कृपा उस पर बनी रहे ताकि जीवन में पैसों की कोई कमी न हो। तो परेशानी कहां है? कहने का भाव है देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करके अपार धन-संपदा प्राप्त होती है तो इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। ज़रा ठहरिए कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप इन्हें प्रसन्न करना तो चाहते हैं मगर आपको इनकी कृपा पाने का तरीका नहीं पता। अगर हां तो चलिए आज आपकी इस परेशानी का हल भी किए देते हैं। आपकी देवी लक्ष्मी के उन 2 मंत्रों के बारे में बताते हैं जिन्हें करना भी मुश्किल नहीं, न ही इन्हें करने के लिए आपको किसी तरह अधिक मेहनत करनी होगी। 

सबसे पहले वैभव लक्ष्‍मी की तस्‍वीर के सामने मुट्ठी भर चावल का ढेर लगाएं और उस पर जल से भरा हुआ तांबे का कलश स्‍थापित करें।
अब कलश के ऊपर एक छोटी सी कटोरी में सोने या चांदी का कोई आभूषण रख लें। 
वैभव लक्ष्‍मी की पूजा में लाल चंदन, गंध, लाल वस्‍त्र, लाल फूल ज़रूर रखें।
प्रसाद के लिए घर में गाय के दूध से चावल की खीर बनाएं। आख़िर में पूजा के बाद लक्ष्‍मी स्‍तवन का पाठ करें या फिर वैभव लक्ष्मी मंत्र का यथा शक्ति जप करें।

मंत्र :
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

वैभव लक्ष्‍मी के व्रत में श्री यंत्र की भी पूजा करें। 

पूजा के वक्‍त श्रीयंत्र को लक्ष्‍मी माता के पीछे रखें और पहले उसकी पूजा करें और उसके बाद वैभव लक्ष्‍मीजी की पूजा करें। संभव हो तो व्रत कथा पढ़ें या सुनाएं। 

इसके बाद गाय के घी से दीपक जलाकर आरती करें और निम्न मंत्र का जाप करें। 

मां वैभव लक्ष्‍मी का दूसरा मंत्र:
यत्राभ्याग वदानमान चरणं प्रक्षालनं भोजनं।
सत्सेवां पितृ देवा अर्चनम् विधि सत्यं गवां पालनम।। 
धान्यांनामपि सग्रहो न कलहश्चिता तृरूपा प्रिया:।
दृष्टां प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन ग्रहे निष्फला:।।

Jyoti

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