बड़े से बड़ा इंसान भी सत्य का आगे मान लेता है हार

Thursday, Aug 13, 2020 - 11:54 AM (IST)

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वर्ष 1934 में जर्मनी के राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग की मौत हो गई, जिसके बाद वहां प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का पद एक कर दिया गया। अब हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन गया। तानाशाह बनते ही उसने जर्मन संसद भंग कर दी, साम्यवादी दलों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया और देश की जनता से स्वावलंबी बनने का आह्वान किया। उस समय वैज्ञानिक आइंस्टाइन विदेश में थे। विभिन्न विश्वविद्यालयों में उन्हें बुलाया जाता, जहां वह अपने सिद्धांतों पर व्याख्यान देते। छात्रों और शिक्षकों के बीच उन्हें सुनने की होड़ लगी रहती। इन व्या यानों में वह इस बात पर जोर देते कि सत्य अपरिवर्तनशील है।

इस बीच जर्मनी में स्थितियां बदलती जा रही थीं। उन्हें अंदाजा हो गया कि अब उनका जर्मनी में रहना कठिन हो जाएगा। पहले वह जर्मनी के राजदूत से मिले, फिर उन्होंने जर्मनी वापस न लौटने का निर्णय किया। इस फैसले की घोषणा करते हुए आइंस्टाइन ने कहा,‘‘जर्मनी मेरे लिए ऐसी जगह रही है जहां राजनीतिक स्वतंत्रता, सहिष्णुता है और जहां कानून के सामने सभी नागरिक समान हैं। जर्मनी में अब मैं नहीं रह सकता, क्योंकि वहां अब इस तरह के हालात नहीं हैं।’’

उधर हिटलर ने देश की सारी शक्तियां अपने हाथ में ले ली थीं और खुद को सर्वोच्च न्यायाधीश भी घोषित कर दिया। हिटलर की पुलिस आइंस्टाइन के पीछे पड़ चुकी थी। उनके कापुथ गांव वाले घर पर छापा मारा गया। वहां उनके सारे कागजात, पत्र वगैरह में आग लगा दी गई। आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत से संबंधित कई लेखों को तो सार्वजनिक रूप से जलाया गया। इसके बावजूद जर्मनी के विश्वविद्यालयों में आइंस्टाइन का सापेक्षता का सिद्धांत पढ़ाया जाता रहा, बस उसमें से आइंस्टाइन और सापेक्षता का नाम हटा गया। तानाशाह ने सापेक्षता के सिद्धांत के जनक का नाम बदला, सिद्धांत का भी नाम बदला, लेकिन सिद्धांत को नहीं बदल पाया। सापेक्षता के सत्य के सामने तानाशाह हार गया।

Jyoti

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