सच्चा जीवन जीने के लिए इन 3 चीज़ों से करें भजन

punjabkesari.in Friday, Jun 24, 2022 - 11:44 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Power of chanting: भजन कैसे किया जाए- इसका कोई एक उत्तर नहीं होता इसलिए कि अपने राम को हम चाहे जैसा भजें, वह भजन है। भजन का अर्थ होता है जिस प्रकार से हम सद्कार्य करते हुए भगवान की सेवा करें, उसका नाम है भजन। भगवान का नाम जप करते हैं वह भजन, भगवान का ध्यान करते हैं वह भजन, भगवान के नाते हम जगत के प्राणियों की सेवा करते हैं वह भजन, भगवान की मूर्ति की पूजा करते हैं वह भजन, भगवान की आज्ञा मानते हैं वह भजन।

ये सब भजन हैं परंतु एक बात समझ लें तो सब कार्य भजन हो जाए। वह बात है कि हमारे पास 3 चीजें हैं शरीर, मन और वाणी। इन तीनों का उपयोग हम सद्कार्यों तथा भगवान के भजन में करें।

शरीर के द्वारा विलासिता, शौकीनी, आराम तलबी, ब्रह्मचर्य का नाश और उद्दंडता इत्यादि दोषों को छोड़ कर शरीर को लगा दें भगवान की सेवा में। यह एक ऐसी पूजा जिससे हम जीवनपर्यंत भगवान की पूजा कर सकते हैं- अपने शरीर से हम जो भी कार्य करें उसमें यही भाव रखें कि हम सद्कार्य करें।

भगवान ने कहा है कि तुम जो भी करो, वह सब मेरे को अर्पण करो। सोएं हम और अर्पण भगवान को हो, भोजन हम करें और अर्पण भगवान को हो और अब इस बात को समझना है कि यह हो कैसे ?

कोई व्यक्ति अमुक पदार्थ इसलिए खाता है कि उसमें स्वाद है। किसी को मिठाई अच्छी लगती है, किसी को नमकीन और किसी को जीभ के स्वाद के लिए खट्टी चीज अच्छी लगती है। व्यक्ति भोजन इसलिए करता है कि अमुक-अमुक पदार्थ जो शरीर के लिए आवश्यक हैं, उपयोगी हैं, उन्हें खाए तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

एक आदमी भूख मिटाने के लिए किसी प्रकार पेट भर लेता है और एक आदमी इसलिए भोजन करता है कि शरीर मिला है भगवत प्राप्ति के लिए परंतु भगवत प्राप्ति होती है भजन में और भजन के लिए शरीर की रक्षा आवश्यक है।

शरीर की रक्षा के लिए भोजन आवश्यक है इसलिए वह वैसा ही भोजन करता है जिससे सात्विक विचार उत्पन्न हों। भजन में मन लगे, विकार न हो और भजनमय जीवन बन जाए।

इस रूप में भोजन भिन्न-भिन्न हैं, इसलिए उनका फल भिन्न-भिन्न होता है। एक का भोजन भगवत्प्राप्ति कराने वाला और दूसरे का भोजन नरकों में ले जाने वाला है।

शक्ति सम्पन्न होकर दूसरों को मारने के लिए, भोग भोगने के लिए, सेवा के लिए, शक्ति के लिए, स्वाद के लिए और भगवान के लिए भोजन होता है।

इसी प्रकार एक व्यक्ति कपड़ा इसलिए पहनता है कि मेरे कपड़ों को देख कर लोग मेरी तरफ आकर्षित हों। लोगों को दिखाने के लिए सजता है। दूसरा उसे स्वाभाविक सजना प्रिय होता है। वह दिखाता नहीं है। एक आदमी इसलिए कपड़ा पहनता है कि समाज में लज्जा की रक्षा करनी चाहिए। समाजोपयोगी वस्त्र पहनने चाहिए और शरीर की रक्षा करनी चाहिए - ठंड और धूप से।

एक व्यक्ति कपड़े इसलिए पहनता है कि शरीर की रक्षा होगी, तब भजन होगा और एक व्यक्ति कपड़े पहनता है भगवत्प्रेम के लिए। कपड़े सभी पहनते हैं, परंतु अपने-अपने भावानुसार अंतर होता है।

इसी तरह प्रत्येक कार्य-खाने में, सोने में, उठने में, बैठने में, व्यापार करने में, नौकरी करने में, वकालत करने में, डाक्टरी में, सेवा में अथवा अन्य किसी भी कार्य में अगर भगवत्सेवा का भाव है तो उसका प्रत्येक कार्य भगवत्सेवा बन जाता है।

लेना-देना, उठाना, रखना, शरीर का चलता-फिरना, शरीर के सारे कार्य भगवत्सेवा बन जाते हैं।

अब रही वाणी की बात। वाणी सेे पांच पाप होते हैं 1. व्यंग्यात्मक वाणी जो सुनने वाले को जाकर चुभ जाए, 2. असत्य बोलना, 3. अप्रिय बोलना, 4. अहितकार बोलना और 4 व्यर्थ बोलना।

दूसरे के मन में उद्वेग करने वाली जुबान बोलना पाप, झूठ बोलना पाप, अप्रिय बोलना पाप, दूसरे के अहित की बात बोलना पाप और व्यर्थ बोलना पाप है।

सबमें भगवान हैं यह समझकर सबका हित करने की इच्छा से कार्य करें, और सत्यप्रिय बोलें। सद्कार्य करते हुए जब समय मिले तो जीभ के द्वारा भगवान का नाम लेते रहें - वही सच्चा जीवन है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News