पितृपक्ष 2019: कौन होते हैं पूर्वज, क्यों किया जाता है इनका श्राद्ध

Sunday, Sep 08, 2019 - 02:02 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
जैसे कि सब जानते हैं कि 13 सितंबर से पितृ पक्ष का आरंभ हो रहा है। इस दौरान अपने पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। पितृ तर्पण की ये परंपरा आज से नहीं बल्कि प्राचीन समय से चली आ रही है। मगर आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ये नहीं पता कि आख़िर हमारे पूर्वज हैं क्या और क्यों इनका पिंडदान किया जाता है। तो आइए आपको बताते हैं कि आख़िर श्राद्ध पर किन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है।  

बता दें पितृपक्ष पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक कुल 16 दिन तक चलता है। जिस दौरान पिंडदान, तर्पण, दान पुण्य आदि कर्म श्रद्धा भाव से किया जाता है। कहा जाता है पितृ पक्ष के सोलह दिन कुल परिवार के सभी दिवंगत पितर सूक्ष्म रूप में धरती पर आते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उनके लिए आत्म तृप्ति के हेतु उनके वंशज तर्पण या पिंडदान आदि कर्म करें जिसे ग्रहण कर वे तृप्त हो सके।

कौन होते हैं पितर
व्यक्ति के परिवार व कुल के ऐसे सदस्य जो अब जीवित नहीं होते, दिवंगत हो चुके होते हैं। फिर चाहे वे बुजुर्ग, बच्चा, युवा, महिला, विवाहित, अविवाहित आदि हो। दिवंगत से मतलब जिनके शरीर अब हमारे बीच नहीं है, वे सब पितर कहे जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो बच्चे अपने पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए पितृ तर्पण करते हैं उनके जीवन में सुख शांति बनी रहती है। इतना ही नहीं दिवंगत पितर प्रसन्न होकर अपने बच्चों के सभी बिगड़े काम बना देते हैं और सूक्ष्म रूप से हमारी मदद भी करते हैं। इसलिए कहा जाता है पितृपक्ष में हमें अपने पितरों को याद करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण, पिण्डदान से कर्म करना ही चाहिए।

ऐसे समझें पितृपक्ष तिथि 
धर्म शास्त्र पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पहला श्राद्ध किया जाता है, लेकिन भाद्रपद पूर्णिमा को भी उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि के दिन शरीर छोड़ा हो। अगर किसी कारण भाद्रपद पूर्णिमा को श्राद्ध नहीं कर सके तो फिर आश्विन मास सर्व पितृमोक्ष अमावस्या के दिन भी किया जा सकता है।

अमावस्या के दिन करें इनका श्राद्ध
कई लोगों को तिथि ही याद नहीं रहती और ऐसे लोग अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि तक को भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति के लिए शास्त्रों में यह विधान दिया गया है कि यदि किसी को अपने पितरों, पूर्वजों के निधन की तिथि मालूम नहीं हो तो वे लोग आश्विन अमावस्या तिथि जिसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है, उस दिन तर्पण, पिंडदान आदि श्राद्ध कर्म करने से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।

Jyoti

Advertising