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Tuesday, Mar 05, 2019 - 12:13 PM (IST)

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गंगा नदी के किनारे तपस्वियों का एक आश्रम था। वहां याज्ञवल्क्य नाम के मुनि रहते थे। मुनिवर एक नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि पानी से भरी हथेली में ऊपर से एक चुहिया गिर गई। उस चुहिया को आकाश में बाज लिए जा रहे था उसके पंजे से छूटकर वह नीचे गिर गई। मुनि ने उसे पीपल के पत्ते पर रखा और फिर से गंगाजल में स्नान किया। चुहिया में अभी प्राण शेष थे। उसे मुनि ने अपने प्रताप से कन्या का रूप दे दिया और अपने आश्रम में ले आए। 

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मुनि- पत्नी को कन्या अर्पित करते हुए मुनि ने कहा कि इसे अपनी ही लड़की की तरह पालना।

उनके अपनी कोई संतान नहीं थी इसलिए मुनि पत्नी ने उसका लालन-पालन बड़े प्रेम से किया। 12 वर्ष तक वह उनके आश्रम में पलती रही। जब वह विवाह योग्य अवस्था की हो गई तो मुनि पत्नी ने मुनि से कहा, ‘‘नाथ! अपनी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है। इसके विवाह का प्रबंध कीजिए।’’

मुनि ने कहा, ‘‘मैं अभी आदित्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता हूं। यदि इसे स्वीकार होगा तो उसके साथ विवाह कर लेगी, अन्यथा नहीं।’’

मुनि ने उससे पूछा कि क्या यह त्रिलोक का प्रकाश देने वाला सूर्य पति रूप में उसे स्वीकार है?

पुत्री ने उत्तर दिया, ‘‘तात! यह तो आग जैसा गर्म है, मुझे स्वीकार नहीं। इससे अच्छा कोई वर बुलाइए।’’ 

मुनि ने सूर्य से पूछा कि वह अपने से अच्छा कोई वर बतलाए।

सूर्य ने कहा, ‘‘मुझसे अच्छे मेघ हैं, जो मुझे ढक कर छिपा लेते हैं।’’

मुनि ने मेघ को बुलाकर पूछा, ‘‘क्या यह तुझे स्वीकार है?’’

कन्या ने कहा, ‘‘यह तो बहुत काला है। इससे भी अच्छे किसी वर को बुलाओ।’’

मुनि ने मेघ से भी पूछा कि तुमसे अच्छा कौन है तो मेघ ने कहा, ‘‘हमसे अच्छी वायु है, हमें उड़ाकर दिशा-दिशाओं में ले जाती है।’’

मुनि ने वायु को बुलाया और कन्या से स्वीकृति पूछी। कन्या ने कहा, ‘‘तात! यह तो बड़ा चंचल है। इससे भी किसी अच्छे वर को बुलाओ।’’

मुनि ने वायु से भी पूछा कि उससे अच्छा कौन है। 

वायु ने कहा, ‘‘मुझसे अच्छा पर्वत है, जो बड़ी से बड़ी आंधी में भी स्थिर रहता है।’’

मुनि ने पर्वत को बुलाया तो कन्या ने कहा, ‘‘तात! यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है, इससे अधिक अच्छा कोई वर बुलाओ।’’

मुनि ने पर्वत से कहा कि वह अपने से अच्छा कोई वर सुझाए। तब पर्वत ने कहा, ‘‘मुझसे अच्छा चूहा है, जो मुझे तोड़कर अपना बिल बना लेता है।’’

मुनि ने तब चूहे को बुलाया और कन्या से कहा, ‘‘पुत्री! यह मूषकराज तुझे स्वीकार हो तो इससे विवाह कर लो।’’

मुनि कन्या ने मूषकराज को बड़े ध्यान से देखा। उसके साथ उसे विलक्षण अपनापन अनुभव हो रहा था। प्रथम दृष्टि में ही वह उस पर मुग्ध हो गई और बोली, ‘‘मुझे मूषिका बनाकर मूषकराज के हाथ सौंप दीजिए।’’

मुनि ने अपने तपोबल से उसे फिर चुहिया बना दिया और चूहे के साथ उसका विवाह कर दिया।

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Niyati Bhandari

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