ये 1 पेड़ लगाने से कभी नष्ट नहीं होगी वंश परम्परा, बड़े से बड़े संकट से मिलेगी मुक्ति

Tuesday, Nov 07, 2017 - 01:42 PM (IST)

परमात्मा पृथ्वी के कण-कण में समाया है। हर डाल-डाल और पात-पात में उसी का स्वरूप समाया है। श्री नारायण पीपल रूप में समाए हैं, इसीलिए पीपल के वृक्ष को ब्रह्म स्थान माना जाता है तथा इसे देववृक्ष कहा जाता है। हमारी धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं में विभिन्न पेड़-पौधों के पत्तों का उपयोग किया जाता है। धार्मिक पर्वों-त्यौहारों पर आम के पत्तों का वंदनवार लगाया जाता है, तो भगवान के प्रसाद में तुलसी के पत्ते डाले जाते हैं। शिव को लक्ष्मी रूप बेल-पत्री चढ़ाई जाती है। स्वयं भगवान शिव बरगद में निवास करते हैं। मंगल कलश में श्री फल के साथ पान या आम के पत्ते लगाए जाते हैं। पूजा-पाठ पर, कथा भागवत पर, शादी-ब्याह या किसी भी मांगलिक कार्य पर हम पत्तों का उपयोग करते हैं।


पीपल के पेड़ को साक्षात् श्री नारायण का स्वरूप माना जाता है। सृष्टि निर्माण का मूल बीज श्री नारायण ही हैं। उनके नाभि कमल से ब्रह्मा और ब्रह्मा से सृष्टि बनी है। पीपल के पेड़ में जल सींचने से लोग अपने पूर्वजों को जल पिलाने का भाव रखते हैं। पीपल के पत्ते दिन-रात प्राणवायु प्रदान करते हैं। इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है।
स्कन्द पुराण में वर्णन किया गया है कि पीपल के मूल रूप में भगवान विष्णु, तने में श्री केशव, शाखाओं में श्री नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवता निवास करते हैं। 


पीपल भगवान विष्णु का जीवन और पूर्णत: मूर्तमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टों का साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप-ताप का शमन करता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि आश्रत्य: सर्वत्र क्षाणां अर्थात समस्त वृक्षों में ‘मैं’ पीपल का वृक्ष हूं। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि ‘अश्वत्थ: पूजितो यत्र पूजिता: सर्व देवता:।’ 


अर्थात पीपल की विधि-विधान से की गई पूजा से सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है। पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी नष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं। पीपल की प्रार्थना के लिए- अश्वत्थ सु महामाग सुमग प्रियदर्शन। इष्टाकामां श्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तु परामवम्।। आयु: प्रजांधनं धान्यं सौ भाग्यं सर्व संपदं। देहि दीवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:।।


बृहस्पति की प्रतिकूलता से उत्पन्न होने वाले अशुभ फल में पीपल समिधा से हवन करने पर शांति मिलती है। प्राय: यज्ञ में इसकी समिधा को बड़ा उपयोगी और महत्वपूर्ण माना गया है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है, जो व्यक्ति पीपल का एक पेड़ लगाता है उसके जीवन से दुख कोसों दूर भागते हैं और धन संबंधी परेशानियां भी नहीं सताती।


प्राचीन काल में दैत्यों के अत्याचारों से पीड़ित समस्त देवता जब विष्णु जी के पास गए, तो उन्होंने इस कष्ट से मुक्ति का उपाय पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि मैं पीपल के रूप में भूतल पर विद्यमान हूं। उसकी आराधना से आप सबको मुक्ति मिलेगी। 


पीपल वृक्ष को जल अर्पित कर 3 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता, दुख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। किसी प्राणी द्वारा अपने बिस्तर पर अचानक प्राण त्याग देने पर विद्वान उस व्यक्ति के पुत्र को पीपल पर जल अर्पित कर उसकी आत्मा की शांति के बारे में बताते हैं। शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष पर तिल से युक्त सरसों के तेल का दीप जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा का शमन होता है।


आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पीपल के पूजन से शनि ग्रह से मुक्ति प्राप्त होती है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से बड़े से बड़े संकट से मुक्ति मिलती है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान लाभदायक रहता है, द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्री कृष्ण इस दिव्य पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। भारतीय संस्कृति में देव वृक्ष है पीपल।

 

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