सहन करने से मनोबल बढ़ता है, उत्साह और विश्वास टूटता नहीं

Monday, Jan 15, 2018 - 03:57 PM (IST)

जीओ गीता के संग, 
सीखो जीने का ढंग 

गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा:। 
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। -गीता 2/14

मात्रास्पर्शा:, तु, कौन्तेय, शीतोष्णसुखदु:खदा:,
आगमापायिन:, अनित्या:, तान्, तितिक्षस्व भारत।।


भावार्थ: सर्दी-गर्मी सुख-दुख ये सब द्वंद्व आने-जाने वाले और अनित्य हैं! सहनशील बनें। अनुकूलता में बहुत अधिक हर्ष और प्रतिकूलता में निराशा नहीं। वे दिन नहीं रहे तो ये भी नहीं रहेंगे-मन को शांत और सम रखें। सहन शक्ति बनाए रखने और बढ़ाने के लिए श्रीगीता जी का यह श्लोक अपने आप में अत्यंत प्रभावी प्रेरणा का काम करता है। जैसे सर्दी के पश्चात गर्मी और गर्मी के पश्चात सर्दी आने-जाने के क्रम में है। ऐसे ही कोई भी सुख या दुख आने-जाने वाला है। रोग की अवस्था में यदि यह विचार मन में बैठ गया कि अब तो शरीर ऐसे ही चलेगा अथवा इससे भी आगे का नकारात्मक विचार-पता नहीं अब इस रोग से बच भी पाऊंगा या नहीं; लगता नहीं कि यह बीमारी पीछा छोड़े। मन नकारात्मक और उसके साथ-साथ निराश होता जाएगा। इस गीता प्रेरणा के भाव पर विचार करो और मन को जगाओ, यह कह कर कि वह समय नहीं रहा तो यह भी नहीं रहेगा। सब कुछ आने-जाने के चक्र में है, तो यह रोग भी अवश्य चला जाएगा-मेरे मन बहुत अधीर मत हो; धैर्यपूर्वक सहन कर; समय अवश्य बदलेगा। मानसिक स्थिति अच्छी रखो। सहनशील बनो! सहन करने से मनोबल बढ़ता है, उत्साह और विश्वास टूटता नहीं। रोग से संघर्ष करने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है एवं उसके स्वस्थ सकारात्मक प्रभाव से रोग निवृत्ति का वातावरण भी स्वाभाविक बनने लगता है।

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