किस भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए ? जानें इसके नियम
punjabkesari.in Tuesday, Jul 02, 2024 - 09:35 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में विभिन्न प्रकार से देवी-देवताओं की पूजा होती हैं। धार्मिक स्थलों पर देवताओं को अगरबत्ती, फूल, ध्वज, नारियल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं और भगवान की परिक्रमा लगाई जाती है। किसी भी देवी-देवता की उपासना में परिक्रमा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि बिना परिक्रमा के पूजा अधूरी रह जाती है। भगवान की परिक्रमा करने से जीवन के पापों और कष्टों का नाश होता है लेकिन क्या आप जानते हैं जिस प्रकार सभी देवताओं की पूजा विधि विभिन्न होती है, उसी तरह देवताओं की परिक्रमा का अलग-अलग विधान होता है। आज की इस आर्टिकल में जानेंगे कि किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए। साथ ही परिक्रमा करने के नियम-
किस भगवान की कितनी परिक्रमा करें-
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि सोम सूत्र को लांघना उचित नहीं होता। शिवलिंग से दूध व जल की धारा जहां बहती हो, उसे सोम सूत्र कहते हैं। जिसे लांघना शुभ नहीं होता है। ऐसे में भगवान शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए।
इसी तरह हनुमान जी की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। हनुमान जी की परिक्रमा करने से कष्टों का निवारण होता है।
मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। गणेश जी की परिक्रमा करने से आपकी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान विष्णु जी और उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और सकारात्मक सोच की वृद्धि होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी दुर्गा की एक परिक्रमा करनी चाहिए।
सूर्यदेव की बात करें, तो धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है। इतना ही नहीं इससे बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार उत्पन्न होते हैं।
पीपल को बहुत ही पवित्र माना इस पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास माना जाता है। पीपल की परिक्रमा से न केवल शनि दोष बल्कि सभी तरह के ग्रह दोषो से छुटकारा मिलता है। ऐसे में बता दें कि पीपल पेड़ की 7 परिक्रमा करनी चाहिए।
अब जानते हैं परिक्रमा करने के नियम-
परिक्रमा शुरू करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए। साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरू की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नहीं मानी जाती।
परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत भूलकर भी न करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।
जहाँ मंदिरों में परिक्रमा का मार्ग न हो वंहा भगवान के सामने खड़े होकर अपने पांवों को इस प्रकार चलाना चाहिए जैसे की हम चल कर परिक्रमा कर रहे हों। परिक्रमा हाथ जोड़कर उनके किसी भी मन्त्र का जाप करते हुए करनी चाहिए, और परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुककर देवता को नमस्कार करके ही परिक्रमा को पूरा करना चाहिए।
जिन देवताओं की परिक्रमा की संख्या का विधान मालूम न हो, उनकी तीन परिक्रमा की जा सकती है। तीन परिक्रमा के विधान को सभी जगह स्वीकार किया गया है।
भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। मान्यता है कि बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, इस वजह से परिक्रमा का लाभ नहीं मिल पाता है। तो ऐसे में बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू नहीं करनी चाहिए।