इस पूंछ से मिलेगा स्वर्ग

Thursday, May 03, 2018 - 10:07 AM (IST)

यह लोक विश्वास है कि मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा को स्वर्ग पहुंचने से पहले वैतरणी नाम की नदी पार करनी पड़ती है, जो व्यक्ति मौत से पूर्व गौ दान कर देता है उसे गौ माता सहारा देती है और मृतक की आत्मा गाय माता की पूंछ पकड़ कर वैतरणी पार करती है। जो गौदान नहीं करता वह मझधार में ही डूब जाता है। इसके बाद आत्मा अनंत काल तक वैतरणी में भटकती रहती है।

हिंदू दर्शन के अनुसार इस बात की बार-बार पुष्टि की जाती है कि मनुष्य में जीवतत्व निवास करता है जो मृत्यु के बाद ब्रह्म में विलीन हो जाता है। मगर स्वर्ग तथा नरक की अवधारणा ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या आदमी की आत्मा मृत्यु के बाद स्वर्ग अथवा नरक में जाती है। यदि हां तो फिर लोगों का इस बात पर विश्वास कर लेना लाजिमी है कि जीवात्मा अनेक बाधाएं पार करते हुए देवलोक पहुंचती होगी।

जहां तक गाय की पूंछ पकड़ कर वैतरणी पार करने की बात है तो यह अवधारणा इसलिए बनी कि लोग गाय को ज्यादा से ज्यादा सम्मान दें, इसलिए यह विचार भी चस्पा कर दिया गया कि यदि गौदान न किया गया तो आत्मा वैतरणी में भटकती रहेगी। यदि इस भाव को प्रतीकात्मक रूप से भी स्वीकार करें तो हम यह कह सकते हैं कि यह संसार ही एक वैतरणी है। इससे पार पाने के लिए हमें सत्कर्म करने चाहिएं ताकि मृत्यु के समय खुद को चैन मिले। हमारी आत्मा हमें ही बार-बार न कोसे।

यह सही है कि सृष्टि में जिस चीज का आज अस्तित्व है, उसे एक दिन विलीन हो जाना ही है। चूंकि शरीर पांच तत्वों से बना है इसलिए उसे इन तत्वों में मिल जाना है। इस तरह इसे ब्रह्म में लीन कहा जाता है। वैसे सच यह है कि भगवान के प्रति सात्विक श्रद्धा का होना ही गाय के समान है। जैसा कि संत तुलसीदास ने कहा है- सांत्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। 

शायद ईश्वर तक पहुंचने के लिए इससे बड़ा साधन और क्या हो सकता है? इसलिए हम ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखें। वही हमारी नैया को वैतरणी के पार लगाएगा।

Niyati Bhandari

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