Osho Teachings : ओशो की 5 अनमोल बातें जो हर दिन आपको रखेंगी पॉजिटिव और खुश

punjabkesari.in Wednesday, Dec 10, 2025 - 11:47 AM (IST)

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Osho Teachings : ओशो हमेशा इस बात पर ज़ोर देते थे कि खुशी बाहर नहीं, बल्कि आपके भीतर है। इसे खोजने के लिए आपको केवल अपने मन की आदतों को बदलना होगा।

वर्तमान क्षण में जीएं 
खुश न रह पाने का सबसे बड़ा कारण है कि हमारा मन या तो अतीत की यादों में उलझा रहता है, या भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है। ओशो कहते हैं कि जीवन केवल इसी क्षण में है यह अभी और यहां है। अतीत को गुजर जाने दें। उसे बदलने की कोई शक्ति आपके पास नहीं है। भविष्य अभी आया नहीं है, इसलिए उसके बारे में परेशान होना व्यर्थ है। जब आप कोई काम कर रहे हों, जैसे खाना खा रहे हों, टहल रहे हों या किसी से बात कर रहे हों, तो अपना पूरा ध्यान उसी क्रिया पर लगाएं। अगर मन भटकता है, तो उसे धीरे से वर्तमान में वापस लाएं। ओशो इसे ही ध्यान कहते हैं। जब आप वर्तमान में होते हैं, तो चिंता के लिए कोई जगह नहीं बचती।

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स्वीकार की कला 
ओशो के अनुसार, दुःख का एक और मुख्य कारण है विरोध। हम चीजों को वैसा नहीं स्वीकार कर पाते, जैसी वे हैं। हम लगातार चाहते हैं कि जीवन हमारी इच्छाओं के अनुसार चले। जो भी है, उसे बिना शर्त स्वीकार करें। चाहे वह आपके भीतर का क्रोध हो, दुःख हो, या बाहर की परिस्थितियां हों। स्वीकार करने का मतलब निष्क्रिय होना नहीं है, बल्कि वास्तविकता को पहचानना है। जब कोई मुश्किल या अप्रिय भावना आती है, तो उससे भागने या उसे दबाने के बजाय, उसे महसूस करें। कहें ठीक है, अभी मैं दुखी हूं या ठीक है, अभी मुझे गुस्सा आ रहा है। यह स्वीकार करने से, उस भावना की शक्ति कम हो जाती है और वह तेज़ी से गुज़र जाती है।

स्वयं को जानें और जैसे हैं, वैसे ही प्यार करें 
समाज और दूसरे लोग लगातार हमें बताते हैं कि हमें कैसा होना चाहिए। इस कारण हम एक नकली व्यक्तित्व जीते हैं और अपने असली स्वरूप से दूर हो जाते हैं। ओशो इसे सबसे बड़ी आत्म-वंचना कहते हैं। अपनी कमियों और खूबियों के साथ स्वयं को प्यार करें। अपनी तुलना दूसरों से करना बंद करें। आप अद्वितीय हैं और आपकी यात्रा किसी और से अलग है। रोज कुछ समय अकेले बिताएं, बस चुपचाप बैठकर। अपने विचारों और भावनाओं को बिना न्याय किए देखें। अपने भीतर के उस बच्चे को स्वीकार करें जो डरता है और उसे प्यार दें। जब आप खुद को स्वीकार करते हैं, तो दुनिया की राय मायने नहीं रखती और मन तुरंत हल्का हो जाता है।

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जीवन को खेल की तरह लें
ओशो कहते हैं कि हम जीवन को बहुत ज़्यादा गंभीरता से लेते हैं। इस गंभीरता के कारण ही तनाव और चिंता पैदा होती है। अगर आप जीवन को एक लीला या खेल की तरह देखें, तो आप परिणामों से ज़्यादा प्रक्रिया का आनंद ले सकते हैं। अपने काम और जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाएं लेकिन उनके परिणामों के प्रति अनासक्त रहें। हार और जीत दोनों जीवन का हिस्सा हैं। थोड़ा हंसना सीखें, खासकर खुद पर। जब कोई गलती हो जाए, तो परेशान होने के बजाय, मुस्कुराएं और सीख लें। अपने भीतर के बच्चे को फिर से जीवित करें जो खेलता है, हंसता है और नाचता है।

ध्यान और साक्षी भाव 
ओशो की सभी शिक्षाओं का मूल ध्यान है। ध्यान का मतलब है साक्षी भाव बस अपने विचारों और भावनाओं को एक दूर खड़े दर्शक की तरह देखना। आप आपका मन नहीं हैं। मन एक उपकरण है लेकिन आप वह हैं जो उस उपकरण को देख रहा है। इस दूरी को महसूस करने से आप मन की उथल-पुथल से बाहर निकल आते हैं।

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Content Editor

Prachi Sharma

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