आपसी प्रेम को बनाए रखने के लिए जरूरी है ये एक चीज़

Wednesday, Jan 01, 2020 - 10:17 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जीवन में जब भी किसी अ'छे और बड़े फैसले का वक्त आता है तब अक्सर मन को संशय और अविश्वास का मकडज़ाल घेर लेता है। हम खुद को एक चौराहे पर देखते हैं और तय नहीं कर पाते कि जाना किधर है। यह एक बड़ा विरोधाभास है। इसका सीधा मतलब है कि हम अपने उद्देश्य और तैयारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। ऐसे में सफलता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हम अंदर से अपनी मंजिल तय करने और उसे पाने के लिए बेचैन हैं, ईश्वर से अपनी कामयाबी के लिए प्रार्थना भी कर रहे हैं लेकिन भीतर से आशंकाग्रस्त हैं। बाहर दृढ़ विश्वास की कथाएं चल रही हैं, भीतर संशयपूर्ण व्यथाएं उमड़-घुमड़ रही हैं। यह दोहरी मानसिकता ही जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना है।

तय मानिए कि अगर आपका संकल्प मजबूत है तो लाख बाधाओं के बावजूद मंजिल पर पहुंचेंगे ही। अगर इसके साथ प्रार्थना को जोडऩा चाहते हैं तो यह सोने पे सुहागा जैसा है। प्रार्थना और कुछ नहीं, आपकी आस्था की एक डोर है जो आपको नीचे ढुलकने से बचने में मदद करेगी। यहां यह जानना जरूरी है कि जब तक हमारे भीतर संशय और अविश्वास का डेरा रहेगा, वह हमें कहीं पहुंचने नहीं देगा इसलिए इन दोनों नकारात्मक वृत्तियों को पहचानने-सूंघने की क्षमता हमारे अंदर होनी चाहिए। यह ज्ञान के बिना संभव नहीं है।

आस्था स्वयं में सुख है और संशय दुख है। आस्था से ही विश्वास जुड़ा है। विश्वास से ही हम जुड़े हैं। पूरी सृष्टि उसकी वजह से परस्पर गुंथी हुई है। विश्वास टूटते ही सृष्टि खंड-खंड खंडित हो जाती है। हम और आप सब अगर एक-दूसरे से प्रेमपूर्ण व्यवहार से जुड़े हैं तो वह इसी आस्था और विश्वास के कारण संभव हुआ है। आपस के जोड़ का सुख वास्तव में प्रेम का सुख है क्योंकि प्रेम की बुनियाद ही विश्वास है। विश्वास टूटा कि प्रेम टूटा। कोई बताए कि हमें खुद पर कितना विश्वास है? सच तो यह है कि हम या तो अविश्वास में जी रहे हैं या अंधविश्वास के सहारे चल रहे हैं। अगर जीवन में कुछ करना या बड़ा पाना है तो इन दोनों से मुक्ति पानी होगी। अपने फैसले की घड़ी में खुद पर विश्वास कीजिए। संशयशील होने की बजाय आस्थावान रहिए, कामयाबी खुद आपके दरवाजे पर दस्तक देगी।

Lata

Advertising