Niti Gyan: ईश्वर बहुत कुछ देता है, लेता कुछ नहीं
Tuesday, Jul 27, 2021 - 03:43 PM (IST)
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एक नगर में एक सेठ रहते थे। उनके पास धन-दौलत, सुख-सुविधा सभी कुछ था। सेठ की बस एक ही आदत खराब थी। जब उनका कोई काम बिगड़ जाता तो वह तुरंत ईश्वर को भला-बुरा कहने लगते थे। इस आदत से उनकी पत्नी भी बहुत परेशान रहती थी। उनका एक नौकर था, जो सेठ जी की सेवा में दिन-रात जुटा रहता था।
एक बार दोपहर के समय सेठ खीरा खा रहे थे। एक खीरा काटा और खाया, अच्छा लगा। बगल में नौकर बैठा हुआ था। दूसरा खीरा जैसे ही सेठ ने काटा और खाया, वह कड़वा निकला। सेठ जी ने कड़वा खीरा अपने नौकर को खाने के लिए दे दिया। नौकर ने खीरे को बड़े चाव से खाया जैसे कि खीरा बहुत मीठा हो। यह देखकर सेठ आश्चर्य में पड़ गए और नौकर से पूछा, ‘‘तुम कड़वा खीरा इतने चाव से कैसे खा रहे हो, क्या तुम्हें यह खीरा कड़वा नहीं लग रहा है?’’
नौकर ने प्रसन्न मन से सेठ से कहा, ‘‘भले ही यह खीरा कड़वा हो, लेकिन आपने दिया है। आप रोज इतनी अच्छी-अच्छी चीजें मुझे खाने के लिए देते हैं तो क्या हुआ, आज मुझे कड़वा खीरा मिल गया तो क्या मैं इसकी बुराई करूं, प्रसन्नता से स्वाद लेकर खा रहा हूं।’’
नौकर की यह बात सुनते ही सेठ जी को समझ में आ गया, उन्होंने मन ही मन सोचा कि ईश्वर ने मुझे इतना कुछ दिया है लेकिन कभी-कभी कोई परेशानी आ जाती है तो मैं ईश्वर को भला-बुरा कहने लगता हूं। यही सही नहीं है। उन्होंने प्रण किया कि आज के बाद वह ईश्वर को भला-बुरा नहीं कहेंगे क्योंकि ईश्वर बहुत कुछ देता है, लेता कुछ नहीं है।