लंबी आयु तथा स्वर्गलोक की प्राप्ति के लिए पढ़ें अत्यंत फलदायी निर्जला एकादशी व्रत कथाएं
punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2024 - 01:22 PM (IST)
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Nirjala ekadashi vrat katha: यूं तो हर माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत करने का बड़ा महत्व माना जाता है, मगर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है, जो ‘निर्जला एकादशी’ कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशियों के व्रत को फलाहार किया जाता है, मगर ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी के व्रत को जल तक भी ग्रहण नहीं किया जाता। निर्जला एकादशी व्रत जितना कष्टयुक्त है, उतना ही अधिक फलदायी भी है क्योंकि इस एक व्रत से वर्ष भर की सभी 26 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से आयु तथा आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।
यह व्रत रखने वालों को सारा दिन-रात निर्जल व्रत करके द्वादशी को प्रात: स्नान करके सामर्थ्य के अनुसार जल युक्त कलश तथा अन्य वस्तुओं का दान करना तथा व्रत का पारायण करके प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। निर्जला एकादशी व्रत संबंधी महाभारत काल की एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार कही जाती है :
पांडवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़ कर थे। उनके उदर में ‘वृक’ नामक अग्नि थी, इसलिए इन्हें ‘वृकोदर’ भी कहा जाता है। वह जन्म-जात शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहां के दस कुंडों का रस पी लेने से उनमें 10 हजार हाथियों के समान शक्ति आ गई थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी। सभी पांडव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, मगर भीमसेन के लिए एकादशी व्रत करना दुष्कर था। अत: उन्होंने वेदव्यास जी से विनय की कि आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं कि मैं एक ही एकादशी के व्रत से वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त कर सकूं।
तब व्यास जी ने उन्हें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से आपको वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा।
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत किया, इसलिए यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है।
इसके अलावा निर्जला एकादशी से जुड़ी एक और कथा इस प्रकार है :
सतयुग के समय तारजंग नामक एक असुर तथा उसके पुत्र मुर ने देवताओं को बड़ा तंग किया। देवता अमरावती छोड़ कर भाग निकले और भगवान श्री विष्णु के पास पहुंच कर अपनी रक्षा के लिए विनय की। विष्णु जी ने मुर की राजधानी चंद्रावती पर चढ़ाई करके मुर की विशाल सेना को पराजित कर दिया व सारी सेना मारी गई। मुर को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था, इसलिए उसे कुछ नहीं हुआ। इस कारण उससे लगातार युद्ध चलता रहा और विष्णु जी चिंतित हो उठे तथा थकावट महसूस करते हुए बद्रिका धाम की एक बड़ी गुफा में जाकर गहरी नींद में सो गए।
दूसरी ओर मुर, जो विष्णु जी को पराजित देखना चाहता था, उन्हें तलाश करते हुए इसी गुफा में आ गया। श्री विष्णु को सोया देख कर वह बड़ा खुश हुआ और उनका सिर काटने की बात सोच ही रहा था कि विष्णु जी के शरीर से एक तेजस्वी कन्या अवतरित हुई जो अति सुंदर थी।
उसे देख कर मुर उस पर मोहित हो गया, मगर कन्या ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। वह श्री विष्णु शक्ति का अवतार थी जिसने मुर को मार दिया। इस पर देवताओं ने खूब खुशी मनाई।
इस बीच विष्णु जी की नींद खुल गई। पूछने पर कन्या ने उन्हें बताया कि वह उनकी पुत्री एकादशी है। यह सुनकर विष्णु जी खुश हुए और कन्या से वर मांगने के लिए कहा तो उसने वर में मांगा कि आप मुझे सदैव अपनी शरण में रखें और मुझे यह वर दें कि जो कोई मेरे नाम का व्रत करे, आपके चरणों की भक्ति मात्र से ही उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त हो। विष्णु जी ने उसे यह वर दे दिया।
उसी वरदान के बाद एकादशी का व्रत शुरू हुआ।
सभी 26 एकादशियों का फल अलग-अलग होता है, मगर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करने से दीर्घायु तथा स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।