चरित्र को कलंकित करने वाले असत्य का प्रयोग कभी न करें

punjabkesari.in Tuesday, Feb 20, 2018 - 01:09 PM (IST)

संस्कृत साहित्य में-‘‘मृच्छकटिकम्’’ नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। उस ग्रंथ में चारुदत्त ब्राह्मण था। उसकी सच्चाई और सद्व्यवहार पर सब विश्वास करते थे और उसके पास अपनी धरोहर रख जाते थे। एक बार उसके पास एक व्यक्ति अपने बहुमूल्य रत्न धरोहर के रूप में रखकर गया। संयोग से ब्राह्मण के घर में चोरी हो गई। इस चोरी में उसके पास रखी हुई धरोहर भी चली गई। चारूदत्त को अपने सामान के चले जाने का इतना दुख नहीं था जितना दूसरे की धरोहर (रत्नों) की चोरी की पीड़ा थी। यह सूचना जब चारूदत्त के एक मित्र को मिली, तब उसने आकर पूछा, ‘‘क्या कोई रत्नों की धरोहर रखने का साक्षी (गवाह) था?’’ 

चारुदत्त ने कहा, ‘‘उस समय तो कोई साक्षी नहीं था।’’

मित्र बोला, ‘‘साक्षी नहीं था तो डरते क्यों हो? वह रत्न लौटाने के लिए कहे तो कह देना मेरे पास रखे ही नहीं गए।’’
चारुदत्त ने उत्तर में कहा-
भैक्ष्येनाप्यर्जयिष्यामि पुनन्र्यासप्रतिक्रियाम्। अनृतं नाभिधास्यामि चरित्रभ्रंश-कारणम्।।

अर्थात चाहे भीख (भिक्षा) मांगू, पर धरोहर के रत्नों का धन उत्पन्न कर उसे मैं लौटा ही दूंगा। किसी भी अवस्था में चरित्र को कलंकित करने वाले असत्य का प्रयोग नहीं करूंगा और मैं झूठ कभी नहीं बोलूंगा, ताकि सच जिंदा रहे।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News