सप्तम रूप-मैया कालरात्रि ‘‘छली-कपटियों का करती नाश’’

Saturday, Mar 24, 2018 - 08:08 AM (IST)

घने अंधकार सी मां तेरी काया
पर देती भक्तों को शीतल छाया!
लम्बे, काले, उलझे, बिखरे बाल
अति भयानक टेढ़ी तेरी चाल!!
खड्ग, लोहकांटा हाथों लहराया
नासिका से ज्वाला को बरसाया!
करती काले गर्दभ की तू सवारी
गले माला की चकाचौंध न्यारी!!
रूप कुरूप पर हर आंख सुहाती
उतारें मैया हम तेरी आरती!!!
शुभ फल देने वाली मां तुम हो
फिर भक्तों को कैसा मां गम हो!
छली-कपटियों का करती हो नाश
जगाती हो हर दिल में विश्वास!!
भूत-प्रेत कभी भी पास न आते
करते स्मरण तेरा सुख वो पाते!
मनवांछित फल तेरे द्वारे मिलता
आशाओं का हर फूल मां खिलता!!
नई चेतना भक्तजनों में जगाती
उतारें दुर्गा, अम्बे की आरती!!!
कहे ‘झिलमिल’ अम्बालवी कवि
तेरे द्वार से मिलती खुशहाली!
हजार दुखों की लाएं दास्तां हम
हर विपदा तूने पल में टाली!!
यश, कीर्ति, धन-वैभव करती प्रदान
जो कन्याओं में भरे मुस्कान!
मंदिरों में भक्त गीत गा रहे
प्यार तेरा, मैया आशीर्वाद पा रहे!!
भक्तों में तू स्वाभिमान बढ़ाती
उतारें मैया कालरात्रि तेरी आरती!!!
 

Punjab Kesari

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