नरसिंह जयंती: इस विचित्र लीला की कथा सुनकर कांप जाएगी आपकी रुह

Wednesday, May 06, 2020 - 07:12 AM (IST)

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Narasimha Jayanti 2020: भगवान को अपने भक्त सदा प्रिय लगते हैं, जो लोग सच्चे भाव से उन्हें याद करते हैं, उन पर प्रभु की कृपा सदा बनी रहती है। भगवान अपने भक्तों के सभी कष्टों का क्षण भर में निवारण कर देते हैं। हमारे शास्त्र एवं पुराण प्रभु की महिमा से भरे पड़े हैं, जिनमें बताया गया है कि भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। जब भक्त किसी दुष्ट के सताए जाने पर सच्ची भावना से प्रभु को पुकारते हैं तो भगवान दौड़े चले आते हैं क्योंकि भगवान तो भक्त वत्सल हैं, जो सदा ही अपने भक्तों के आधीन रहते हैं। अनादि काल में जब दानवों ने देवताओं को तंग किया तो उन्होंने आहत होकर अपनी रक्षा के लिए प्रभु को पुकारा तो भगवान ने किसी न किसी रुप में अवतार लेकर उनकी रक्षा की। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और हिरण्यकश्यप के आतंक को समाप्त करने के लिए भगवान ने श्री नृसिंह अवतार लिया। जिस दिन भगवान धरती पर अवतरित हुए उस दिन वैशाख मास की चतुर्दशी थी। इसी कारण यह दिन नृसिंह जयंती के रुप में मनाया जाता है। इस बार 6 मई को नृसिंह जयंती पर उपवास करके भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है।



क्यों मनाई जाती है नृसिंह जयंती
पदमपुराण के अनुसार दिति और ऋषि कश्यप जी के दो पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष हुए। यह दोनों बड़े बलशाली एवं पराक्रमी थे तथा वह सभी दैत्यों के स्वामी थे। हिरण्याक्ष को अपने बल पर बड़ा अभिमान था क्योंकि उसके शरीर का कोई निश्चित मापदण्ड नहीं था। उसने अपनी हजारों भुजाओं से समस्त पर्वत, समुद्र, द्वीप तथा प्राणियों सहित सारी पृथ्वी को उखाड़ कर सिर पर रख लिया तथा रसातल में चला गया, जिससे सभी देवता भयभीत होकर त्राहि-त्राहि करने लगे तथा वह भगवान नारायण की शरण में गए। भगवान ने तब वराह रूप में अवतार लेकर हिरण्याक्ष को कुचल दिया जिससे वह मारा गया तथा भगवान ने धरती को पुन: शेषनाग की पीठ पर स्थापित करके सभी को अभयदान दिया।


अपने भाई की मृत्यु से दुखी हुए हिरण्यकश्यप ने मेरूपर्वत पर जाकर घोर तपस्या की तथा सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसे सारी सृष्टि का कोई मनुष्य अथवा पशु मार ही न सके, वह न दिन में मरे तथा न ही रात को, वह न किसी छत के नीचे मरे तथा न ही खुले आकाश में तथा न ही धरती पर मरे तथा न ही किसी वस्तु पर गिरकर, कोई अस्त्र उसे काट न सके तथा आग उसे जला न सके। यहां तक कि साल के 12 महीनों में से किसी भी महीने में न मर पाऊं।


ऐसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा तथा और अधिक अहंकार में आ गया और अपने आप को भगवान कहने लगा। दैत्य हिरण्यकश्यप के घर प्रहलाद का जन्म हुआ। वह बालक भगवान विष्णु के प्रति भक्ति भाव रखता था जो उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं था। उसने अनेकों बार पुत्र को समझाया कि वह भगवान विष्णु की नहीं बल्कि उसकी पूजा करे। उसने अपनी सारी प्रजा को भी तंग कर रखा था। उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति किसी भगवान की पूजा अर्चना नहीं कर सकता था। जब हिरण्यकश्यप को अपने राज्य में किसी के बारे में ऐसी सूचना भी मिलती थी तो वह उसे मरवा देता था। पुत्र मोह के कारण उसने प्रहलाद को बहुत समझाया परंतु जब वह न माना तो उसने अपनी बहन होलिका जिसे वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, उसके साथ मिलकर प्रहलाद को मारने की कोशिश की।


होलिका अपने भतीजे को मारने के लिए उसे गोद में लेकर दहकती हुई आग में बैठ गई परंतु - जाको राखे साईंयां मार सके न कोई, की कहावत चरितार्थ हुई और भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका न हुआ तथा होलिका जलकर राख हो गई। बहन के जल जाने के बाद तो हिरण्यकश्यप गुस्से से आग बबूला हो गया तथा उसने प्रहलाद को मारने के लिए कभी पर्वत से गिराया, कभी हाथी के पांव तले रोंदवाया और कभी सांपों के आगे फैंकवाया। उसने प्रह्लाद पर अनेक अत्याचार किए परंतु मारने वाले से ज्यादा बलवान है बचाने वाला।


भक्त की पुकार पर एक खंभे में से प्रगट होकर भगवान ने हिरण्यकश्यप के अंहकार का नाश किया। नारायण के आधे मनुष्य और आधा सिंह शरीर देख कर असुरों में खर, मकर, सर्प, गिद्ध, काक, मुर्गे और मृग जैसे मुख वाले राक्षस अपनी योनियों से मुक्ति पाने के लिए प्रभु के हाथों मरने के लिए आगे आ गये और वधोपरांत राक्षस योनि से मुक्त हो गए। प्रभु ने पल भर में दैत्य सेना का संहार कर दिया। अंत मे हिरण्यकशिपु भी युद्ध के लिए आया। उस समय समस्त जगत अन्धकार में लीन हो गया। भगवान ने अपनी जंघा पर लिटा कर उसका वध कर दिया।


क्या है प्रभु का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार श्री नृसिंह जी को भगवान विष्णु जी का अवतार माना जाता है तथा इसमें उनका आधा शरीर नर तथा आधा शरीर सिंह के समान है तभी इस रूप को भगवान विष्णु जी के श्री नृसिंह अवतार के रूप में पूजा जाता है।

Niyati Bhandari

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