इस जगह हुआ था देश के पहले नारद मंदिर का निर्माण

Sunday, May 19, 2019 - 04:56 PM (IST)

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जैसे कि आप सब जानते हैं आज ज्येष्ठ मास के पहले दिन नारद जयंती का दिन मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि नारद जी के दुनिया के सबसे पहले पत्रकार थे। हिंदू शास्त्रों के अनुसार देवर्षि नारद ब्रह्मा के छः पुत्रों में से छठे है जिन्होंने कठिन तपस्या करके ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया। ये भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। तो चलिए आज इस खास मौके पर आपको बताते हैं देश में स्थापित इनके मंदिर के बारे में-  

देवर्षि नारद धर्म के प्रचार और लोक-कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है-

देवर्षीणाम् च नारद:।

देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पांचरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है। नारद जी मुनियों के देवता थे।

मथुरा-वृन्दावन के गोवर्धन मार्ग पर भगवान नारद जी का मंदिर स्थापित है। बताया जाता है कि मंदिर में स्थापना के लिए नारद जी की मूर्ति का निर्माण शहर के एक प्रतिभाशाली कलाकार द्वारा किया गया था। इसके अलावा गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर नारद कुंड के पास मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया जो  चार वर्ष चलने के बाद पूरा हुआ था। इस मंदिर की सबस खास बात ये है कि यह देश का पहला नारद मंदिर है। मंदिर में विराजमान की जाने वाली मूर्ति के निर्माण की जिम्मेदारी शहर के प्रतिभाशाली कलाकार को दी गई थी। जिनका कहना है कि उनके लिए सौभाग्य की बात है कि उन्हें दुनिया के पहले नारद मंदिर के लिए मूर्ति बनाने का मौका मिला।

पुराणों में महत्व
मंदिर का निर्माण कार्य करवा रहे दीनबंधु देवशरण महाराज मथुरा-वृन्दावन पर कई शोध कार्य कर चुके हैं। उनके अनुसार पुराणों में इस स्थान को नारदजी का स्थान माना गया है। नारदजी ने भक्त प्रहलाद की मां कयादू को इसी स्थान पर प्रवचन दिए थे। जब प्रहलाद गर्भ में था। वहीं धु्रव को भी नारदजी ने इसी स्थान प्रवचन और दीक्षा  दी थी।
 

Jyoti

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