नाग पंचमी: पौराणिक कथा के साथ जानें इतिहास

Friday, Jul 14, 2017 - 10:30 AM (IST)

मान्यता है कि श्रावण मास की पंचमी को नाग ब्रह्मा जी के पास मिलने के लिए गए थे तथा उस दिन नागों को श्राप से मुक्ति मिली थी। उसी दिन से नागों का पूजन करने की परम्परा आरम्भ हुई थी। वाराह पुराण के अनुसार इसी दिन सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी ने अपनी कृपा से शेषनाग को अलंकृत किया था और लोगों ने पृथ्वी का भार धारण करने की सेवा लेने पर नाग देवता का पूजन किया था जो उसी परम्परा से आज भी किया जाता है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन में विशाल नाग कालिया को परास्त करके लोगों का जीवन बचाया था। उन्होंने सांप के फन पर नृत्य किया और वह नाग नथैया कहलाए। मान्यता है कि तब से नागों की पूजा करने की परम्परा चल रही है। ऐसा करने से जहां नाग वश में रहते हैं वहीं भगवान शिव के गले में नागों की माला होने से मनुष्य को भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है। वासुकि नाग को समुद्र मंथन में रस्सी के रूप में प्रयुक्त किया गया था। लोकधर्म में नागों का जिक्र अर्धमानव के रूप में भी मिलता है। यह भी मान्यता है कि हमारे पूर्वज सर्प के रूप में अवतरित होते हैं। सर्पों की माता सुरसा के नाम पर मनसा माता के मंदिर भारत में अनेक स्थानों पर है जहां पूजन करने से जीव की सभी मनोकामनाएं बहुत जल्दी पूर्ण हो जाती हैं, मदिरों में नागपंचमी के दिन नागमूर्तियों को पंचामृत से स्नान कराने की परम्परा है।


पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार एक किसान के दो बेटे तथा एक पुत्री थी, एक दिन हल चलाते समय उसने सांप के 3 बच्चों को हल से रौंदकर मार डाला, नागिन बच्चों के दुख में बहुत दुखी हुई, उस ने बदला लेने के लिए रात को जाकर किसान की पत्नी और उसके दोनों बेटों को डस लिया तथा अगले दिन वह उसकी बेटी को डंसने गई तो किसान की बेटी ने उसे मीठा दूध पिलाया तथा अपने माता-पिता को माफ करने के लिए प्रार्थना की। नागमाता प्रसन्न हुई तथा उसने सभी को जीवन दान दिया। बेटी ने हर साल नागमंचमीं के दिन पूजा करने का वायदा किया। कहा जाता है कि जो नागदेवता की पंचमी को पूजा करता है उसकी सात पीढिय़ों की रक्षा नागदेवता करते हैं।


प्रस्तुति: वीना जोशी, जालंधर
veenajoshi23@gmail.com

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