गुप्त नवरात्रि 2020: देवी मां की कृपा पानी हैं, तो नवरात्रों में 1 बार ज़रूर जाएं यहां

Saturday, Jan 25, 2020 - 06:07 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
नवरात्रि का आगाज़ होते ही देवी मां के भक्त देश में स्थित उनके विभिन्न प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिक के दर्शनों के लिए निकल जाते हैं। फिर चाहे वो शारदीय नवरात्रि चैत्र या गुप्त। माघ मास की प्रतिपदा 25 जनवरी, 2020 दिन शनिवार से साल 2020 के पहले नवरात्रे शुरू हो गएं हैं जो गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार इन्हें माघ गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है। बता दें धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दौरान देवी दुर्गा की पूजा गुप्त तरीके से की जाने का विधान है। कहा जाता है इन नवरात्रि काल में इनकी पूजा का अधिक प्रचार प्रसार करने से लाभ प्राप्त नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो गुप्त नवरात्रों मे 10 महाविद्याओं की पूजा से तांत्रित शक्तियां प्राप्त होती हैं। यही कारण तमाम तांत्रिक इस दौरान देवी दु्र्गा की गुप्त रूप से पूजा करते हैं ताकि उनकी तंत्र शक्तियां और प्रगाढ़ हो सकें। 

​​​​​​​तो वहीं इस दौरान मां के विभिन्न मंदिरों के दर्शन करने से भी इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे जातक के सभी कार्य संपन्न होते हैं तथा जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। आज हम आपको इनके एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाने मनोकामनाएं तो पूरी होती हैं। साथ ही साथ यहां चमत्कार भी होते हैं। अब वो चमत्कार क्या जानने के लिए पढ़े आगे- 

राजस्थान के पाली जिलें में शीतला माता  का एक मंदिर स्थित है, जिसे एक चमत्कारी मंदिर कहा जाता है। क्योंकि इससे जुड़ी एक ऐसी बात है जो इस बात का प्रमाण देती है कि यहा चमत्कार होते हैं। दरअसल बताया जाता है कि इस मंदिर में आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा घड़ा स्थित है। जो श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ के लिए केवल साल में दो बार खोला जाता है। 800 साल पुराने ये इस घड़े को लेकर कहा जाता है कि इसमें अबतक 50 लाख लीटर से भी ज्यादा पानी भरा जा चुका है। मान्यताओं के अनुसार इसमें कितना भी पानी डाला जाए, ये कभी भरता नहीं है। ऐसी भी मान्यता है कि इसका पानी एक राक्षस पीता है, जिसके चलते ये पानी से कभी नहीं भर पाता है।

सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि वैज्ञानिक भी अभी तक इसका कोई कारण नहीं जान पाए। यहां के ग्रामीण बताते हैं कि करीब 800 साल से गांव में पानी चढ़ाने की ये परंपरा चली रही है। बताया जाता है इस घड़े से साल में दो बार पत्थर हटाया जाता है। पहला शीतला सप्तमी पर और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूनम पर। दोनों मौकों पर गांव की महिलाएं इसमें कलश भर-भरकर हजारों लीटर पानी डालती हैं, लेकिन घड़ा नहीं भरता। फिर अंत में पुजारी प्रचलित मान्यता के तहत माता के चरणों से लगाकर दूध का भोग चढ़ता है तो घड़ा पूरा भर जाता है। जिसके बाद इसे बंद कर दिया जाता है।

Jyoti

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