कड़वे प्रवचन लेकिन सच्चे बोल- मुनि तरुण सागर जी

Friday, Jul 10, 2020 - 09:59 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

1440 मिनट
ईमानदारी से जितना अर्जित करो उसका कुछ हिस्सा सेवा-कार्य में समर्पित जरूर करो। कहीं ऐसा न हो ‘अर्जन-अर्जन’ में ही जीवन का ‘विसर्जन’ हो जाए। कुदरत हमें हर रोज 1440 मिनट बख्शती है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उनका कैसा उपयोग करते हैं। 1440 मिनट में से हम भले ही 1400 मिनट दुनियादारी में दे दें पर 40 मिनट भक्ति के लिए निकालते चलें, तो जीवन सफल हो जाए।

पुण्य का दुपट्टा
चादर छोटी हो और पैर लम्बे हों तो पैर बाहर निकलेंगे या सिर। ऐसी स्थिति में यदि न तो हमारी चादर बढ़ाने की सामर्थ्य है और न ही पैर काटने की, तो अब इस समस्या का समाधान क्या है? समस्या का एक ही समाधान है और वह है तपस्या। नहीं समझे! समझाता हूं। मतलब पैरों को संकुचित कर लेना चाहिए, इच्छाओं को चित कर देना चाहिए। पुण्य का दुपट्टा छोटा है और इच्छाओं के पैर बड़े।

जरूरत इसलिए है
एक सवाल : जब भगवान सब जगह है तो मंदिर और तीर्थों की जरूरत क्या है?

अरे भाई! हवा तो सब जगह व्याप्त है, पर उसे महसूस करने के लिए पंखे की जरूरत हुआ करती है। ठीक इसी तरह भगवान को मंदिर और तीर्थों पर महसूस किया जाता है। गाय के पूरे शरीर में दूध है पर उसे पाने का माध्यम थन है। भगवान घट-घट में है, पर उसे जानने का माध्यम देवायतन (मंदिर) है। मंदिर की प्रतिमा वैराग्य की प्रतिमा याद दिलाती है।

खुले विचारों का मतलब
लड़कियों का जींस-टी-शर्ट पहनना गलत नहीं है लेकिन उन्हें ऐसे कपड़े पहनने से बचना चाहिए जिनमें फूहड़ता और अश्लीलता झलकती हो। खुले विचारों का मतलब मर्यादा की हदों को लांघना नहीं होना चाहिए। लड़कियों को देखना चाहिए कि फैशन-फरस्ती के नाम पर वे कुछ ऐसा तो नहीं कर रही हैं जो मर्यादा के खिलाफ हो। फैशन और व्यसन इन दो बुराइयों की वजह से युवा पीढ़ी अपनी वैल्थ और हैल्थ को बर्बाद कर रही है।

Niyati Bhandari

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