मुनि श्री तरुण सागर जी- जवानी पर ज्यादा मत इतराना

punjabkesari.in Monday, Mar 24, 2025 - 12:12 PM (IST)

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नई पीढ़ी को संस्कारी बनाएं
वक्त तेजी से बदल रहा है और बदलते वक्त में अगर तुमने नई पीढ़ी को संस्कारित नहीं किया तो कल जब यह पीढ़ी अंगड़ाई लेकर मैदान में आएगी और तुम बुढ़ापे की चौखट पर खड़े होंगे, तो तुम्हारा युवा बेटा वृद्धाश्रमों का एलबम लाकर तुम्हें दिखाएगा और कहेगा कि पिता जी, यह एलबम देखिए, इसमें देश के चुनिंदा वृद्धाश्रम दर्ज हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। आप इनमें से कोई भी एक अपने लिए पसंद कर लीजिए, ताकि मैं आपको वहां भिजवाकर अपना पुत्र धर्म निभा सकूं।

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पिता ही देव है
पितृदेव भव: यानी पिता देव है। मां की ममता धरती से भी भारी है और पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा है क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाश से भी ऊंचे होते हैं। दुनिया में कोई किसी को अपने से आगे बढ़ता और ऊंचा उठता नहीं देख सकता। एक पिता ही है जो अपनी संतान को अपने से सवाया होता हुआ देख कर खुश होता है। देश के नौजवानों, अपने पर्स में रुपए की जगह अपने पिता की तस्वीर रखिए क्योंकि उस तस्वीर ने ही तुम्हारी तकदीर संवारी है। पेड़ बूढ़ा ही सही, आंगन में लगा रहने दो, फल न सही छांव तो देगा।

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ज्यादा मत इतराना
जवानी पर ज्यादा मत इतराना क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अत: कानों में बहरापन आए, इससे पहले ही जो सुनने जैसा है उसे सुन लेना। पैरों में लंगड़ापन आए, इससे पहले ही दौड़-दौड़ कर तीर्थयात्रा कर लेना। आंखों में अंधापन आए, इससे पहले ही अपने स्वरूप को निहार लेना। वाणी में गूंगापन आए, इससे पहले ही कुछ मीठे बोल बोल लेना। हाथों में लूलापन आए इससे पहले ही दान-पुण्य कर डालना। दिमाग में पागलपन आए इससे पहले ही प्रभु के हो जाना।

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कलेजा चाहिए
पैसा कमाने के लिए कलेजा चाहिए मगर दान करने के लिए उससे भी बड़ा कलेजा चाहिए। दुनिया कहती है कि पैसा तो हाथों की मैल है। मैं पैसे को ऐसी गाली कभी नहीं दूंगा, जीवन और जगत में पैसे का अपना मूल्य है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह भी सही है कि जीवन में पैसा कुछ हो सकता है, कुछ-कुछ भी हो सकता है और बहुत-कुछ भी हो सकता है, मगर ‘सब कुछ’ कभी नहीं हो सकता। और जो लोग पैसे को ही सब कुछ मान लेते हैं, वे पैसे की खातिर अपनी आत्मा को बेचने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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