Muni Shri Tarun Sagar: दादा बन गए हैं, दादागिरी करना छोड़ दें

Friday, Apr 12, 2024 - 09:49 AM (IST)

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धरती कांपती नहीं हंसती है
लोग कहते हैं कि रावण और सिकंदर सरीखे आततायी जब इस धरती पर चलते थे तो धरती कांपती थी लेकिन मैं कहता हूं कि वह कांपती नहीं, अपितु हंसती थी और कहती थी, बच्चू मेरे ही अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो। ठीक है, थोड़ी देर और उछल-कूद लो, आना तो मेरी ही गोद में है। दरअसल, धरती का कोई पति नहीं हुआ, वह तो सदा कुंवारी है। तभी तो इस देश के एक छोर का नाम कन्याकुमारी है।


यही जिंदगी है
तुम्हारी जिंदगी है क्या ? नदी-नाव संयोग। तुम नदी पार होने गए, नाव पर सवार हुए और भी जो लोग इधर-उधर से किनारे पर आकर खड़े थे, वे भी सब आ गए। नाव आगे बढ़ी। कुछ जान-पहचान हुई। तुमने उनका पता पूछा, उन्होंने तुम्हारा पता पूछा। कुछ लोगों से दोस्ती हो गई और कुछ लोगों से दुश्मनी। देखते ही देखते नाव दूसरे किनारे लग गई। सब बटोही उतर पड़े और अपनी-अपनी राह चल पड़े। बस यही है जिंदगी।

नर से नारायण
मनुष्य एक संभावना है। वह नीचे गिरकर पशु भी बन सकता है और ऊपर उठकर देव भी। देव हमेशा देव ही रहता है और पशु हमेशा पशु। पर इंसान सच्चाई के रास्ते पर चले तो त्रशस्र बन जाता है और बुराई के रास्ते पर चले तो ष्ठशद्द. त्रशस्र का उल्टा ष्ठशद्द ही तो बनता है। मनुष्य अद्भुत है। वह नर से नारायण और नर से नारकी बन सकता है। अच्छी करनी करो तो राम की तरह पूजा जाता है और बुरी करे तो रावण की तरह फूंका।


दादा बन गए हैं, दादागिरी करना छोड़ दें 

बुजुर्गों से : अगर आप चाहते हैं कि आपका बुढ़ापा सुख से कट जाए तो मेरी चार बातें याद रखें। पहली : 60 साल के हो जाओ तो सत्ता का सुख छोड़ दो, पारिवारिक सिर-पच्चियों से मुख मोड़ लो। 

दूसरी : कम बोलें, काम का बोलें। मुख खोलें तो केवल प्रशंसात्मक शब्द बोलें। 

तीसरी : अनावश्यक टोकाटाकी न करें। इससे आपकी उपेक्षा बढ़ेगी और अपेक्षा घटेगी। चौथी : चूंकि आप दादा तो बन ही गए हैं, अत: दादागिरी करना छोड़ दें।

Niyati Bhandari

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