Muni Shri Tarun Sagar: अपने बेटे-बहू से कहना...

Monday, Jun 06, 2022 - 09:35 AM (IST)

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हम तो बस मेहमान हैं
आठ साल और साठ साल की उम्र में घर छोड़ देना इस देश की पुरानी परम्परा रही है। इधर जब बच्चा आठ साल का होता था तो विद्या अध्ययन के लिए घर छोड़कर गुरुकुल चला जाता था और उधर जब व्यक्ति साठ साल का होता था तो घर छोड़कर संन्यास आश्रम ले लेता था। मेरा निवेदन तो केवल इतना-सा है कि साठ साल में घर भले न छोड़ो पर कम से कम अधिकार का सुख तो छोड़ ही देना। ‘मुझे क्यों नहीं पूछा?’ ऐसा भाव छोड़ देना।

जिंदगी दो घड़ी से ज्यादा नहीं
अपने बेटे-बहू से कहना, ‘‘अब तुम ही इस घर के मालिक हो। हम तो बस मेहमान हैं। अब तुम अपने ढंग से जिओ। अपने ढंग से रहो।’’

पहले के लोग घड़ी नहीं पहनते थे, इसके बावजूद उनका जीवन समयबद्ध था। उनका सोना-जागना, खाना-पीना, सब कुछ समय पर होता था। इसके विपरीत आज हर घर और हर हाथ में घड़ी होने के बावजूद आदमी की दिनचर्या एकदम अस्त-व्यस्त है।

आज आदमी की कलाई में बंधी घड़ी महज शोभा की वस्तु बनकर रह गई है जबकि घड़ी आदमी को घड़ी-घड़ी चेताया है कि जिंदगी घड़ी-दो घड़ी से ज्यादा नहीं है। अत: तू शांत-चित्त हो, घड़ी भर बैठकर प्रभु का स्मरण कर ले वरना हाथ की घड़ी हाथ में बंधी रह जाएगी और जीवन की घड़ी बंद हो जाएगी।

Niyati Bhandari

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