Muni Shri Tarun Sagar: क्रोध को नौकर बनाकर रखो, मालिक मत बनने दो।
punjabkesari.in Friday, Aug 06, 2021 - 01:52 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Muni Shri Tarun Sagar: बच्चों को सिर्फ बच्चा समझने की भूल न करें बल्कि उन्हें समझकर उनकी प्रतिभा को निखारने में उनका सहयोग करें। बच्चे से किसी ने पूछा, ‘‘तुम बड़े होकर क्या बनोगे?’’
बच्चे ने कहा, ‘‘पागल।’’
उसने कहा, ‘‘मतलब?’’
बच्चे ने कहा, ‘‘मां मुझे डाक्टर बनाना चाहती है, पापा इंजीनियर बनाना चाहते हैं, भैया क्रिकेटर बनाना चाहते हैं। चाचू संगीतकार बनाना चाहते हैं। अब आप ही बताइए मैं पागल नहीं तो और क्या होऊंगा।
धर्म कोई हो-हउआ नहीं, जीवन की पवित्रता है। धर्म के मायने करुणा, प्रेम और परोपकार है। उसका प्रतीक फिर चाहे राम हो या रहीम, कृष्ण हो या करीम, बुद्ध हो या महावीर कोई फर्क नहीं पड़ता। करुणा धर्म है, क्रूरता कभी धर्म नहीं हो सकती। दरअसल आज धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों ने अपने निजी स्वार्थों के कारण धर्म के असली चेहरे पर धर्मांधता का नकाब चढ़ा दिया है जिससे वह आपसी वैमनस्य का कारण बनता जा रहा है।
देश और विदेश की संस्कृति में बड़ा फर्क है। हमारे देश में जितना प्रेम लोग अपनी पत्नी से करते हैं उससे कहीं अधिक प्रेम भगवान से करते हैं जबकि विदेशों में जितना प्रेम लोग अपनी पत्नी से करते हैं, उससे कहीं अधिक अपने कुत्ते से करते हैं। यहां रिश्ते हैं वहां रास्ते हैं। यहां संबंध है। वहां अनुबंध है, यहां रिश्तों को जिया जाता है, वहां रिश्तों को दिया जाता है। वहां (लंदन में) चार हजार सिनेमा घर हैं, यहां (वृंदावन में) चार हजार भगवान के घर हैं।
क्रोध करना जरूरी हो तो हल्का क्रोध करें। हल्का क्रोध यानि क्रोध का अभिनय। जैसे मां बच्चे को समझाने के लिए क्रोध करती है, उसके गाल पर चपत लगाती है पर प्रेम से चपाती भी खिलाती है। क्रोध नौकर की तरह होना चाहिए। जब बुलाओ तो चला आए और जब जाने को कहो तो चला जाए। अभी तो क्रोध मालिक की तरह आता है और मधुमक्खियों की तरह छा जाता है। क्रोध को नौकर बनाकर रखो, मालिक मत बनने दो।