Muni Shri Tarun Sagar- घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो

Tuesday, Jun 08, 2021 - 02:37 AM (IST)

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कड़वे प्रवचन...लेकिन सच्चे बोल

चार तरह के लोग
चार तरह की मति वाले लोग हैं। 1. सुमति, 2. कुमति, 3. दुर्मति 4. सन्मति। सुमति वाले सोचते हैं : मेरा फायदा हो न हो दूसरों का अवश्य होना चाहिए। कुमति वाले सोचते हैं, मेरा फायदा न हो तो दूसरों का भी नहीं होना चाहिए। दुर्मति वाले की तो मति ही मारी गई। वे सोचते हैं : मुझे भले ही कोई लाभ न हो, दूसरों का नुक्सान अवश्य होना चाहिए। सन्मति वाले सोचते हैं : मेरा भले ही नुक्सान हो जाए, दूसरों का फायदा अवश्य होना चाहिए। आप क्या सोचते हैं?

कमल कीचड़ में रह कर भी...
जिंदगी एक नदी है जो बहती जा रही है। नदी बहते-बहते सागर में मिल जाए तो जिंदगी ‘बंदगी’ हो जाती है और सागर में मिलने से पहले ही नदी खो जाए तो जिंदगी ‘गंदगी’ हो जाती है, दरिंदगी हो जाती है। जिंदगी को जीना मगर कीचड़ में कीड़े की तरह नहीं अपितु कीचड़ में कमल की तरह। कमल कीचड़ में रहकर भी उससे मुक्त रहता है। तुम्हें भी घर-संसार में रह कर भी समयसार (आत्मा) में रहना है।

संत धरती के दिवाकर हैं
संत दिवाकर है। दिवाकर का काम अंधकार को हरना और प्रकाश को फैलाना है। समाज में अज्ञान-अंधकार फैला हुआ है। संत समाज में अपनी ज्ञान रश्मियां बिखेरते हैं और लोगों के दिलों में ज्ञान-दीप प्रज्वलित करते हैं। सूरज आसमान का दिवाकर है तो संत धरती के, पर दोनों में एक अंतर है कि आसमान के दिवाकर को देखकर ‘जी मचलता’ है और धरती के दिवाकर को देखने को ‘जी मचलता’ है।

किस्मत कारखाने में नहीं बनती
घरवाली और किस्मत कब रूठ जाए पता नहीं। अत: घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो। किस्मत किसी कारखाने में नहीं बनती। किस्मत बनती है किए हुए शुभाशुभ कर्मों से। खोटे कर्मों से किस्मत भी ‘खोटी’ ही बनेगी और खरे (शुभ) कर्मों से किस्मत सफलता की ‘चोटी’ चढ़ेगी। याद रखना : चोट खाकर ही आदमी चोटी पर पहुंचता है। मतलब ‘ठोकर’ सहकर ही आदमी ‘ठाकुर’ बनता है।

बहस की बजाय काम पर दो ध्यान
बहस मत कीजिए, बहस से जीवन तहस-नहस होता है। बहस अक्सर खोखली होती है, बहस करने से सिर्फ समय नष्ट होता है और हासिल कुछ नहीं होता। किसी बहस में जीत जाने से अगर आपको लगता है कि आपने जंग जीत ली तो आप गलत हैं। बहस की बजाय आपको अपने काम से खुद को साबित करना चाहिए। जब आपको काम बोलेगा तो बहस की जरूरत ही नहीं होगी।
- मुनि श्री तरुण सागर जी

Niyati Bhandari

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