Muni Shri Tarun Sagar- जब तक बुढ़ापा नहीं सताता....

Monday, Apr 26, 2021 - 11:01 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

बिना गुरु के
रावण बड़ा शक्तिशाली था। उसमें शक्ति तो थी मगर भक्ति नहीं। बिना भक्ति के शक्ति कितना अनर्थ करती है यह कोई रावण से सीखे। रावण ने सोचा था ‘समुद्र का पानी मीठा कर दूंगा, चंद्रमा का कलंक निकाल दूंगा, स्वर्ग तक सीढ़ी लगा दूंगा।’’ पर कुछ नहीं कर पाया। रावण के पास सब कुछ था- तख्त, ताज, वैभव, विलास। अगर नहीं था तो रावण का कोई गुरु नहीं था। बिना गुरु के शक्ति, बिना गुरु के बुद्धि, बिना गुरु के सम्पत्ति कितना अनर्थ करती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है रावण।

संत का सामर्थ्य
नेता शहर का चेहरा तो बदल सकता है, लेकिन आदमी का नहीं। आदमी का चेहरा और चरित्र बदलने का सामर्थ्य सिर्फ संत में होता है। कानून और दंड के भय से समाज को नहीं सुधारा जा सकता। समाज सुधार का कार्य कोई संत और मुनि ही कर सकता है। नेता समाज में आता है तो नोट, वोट और सपोर्ट मांगने के लिए आता है लेकिन संत नोट, वोट और सपोर्ट नहीं बल्कि तुमसे तुम्हारी खोट मांगने के लिए आता है। संत-मुनि चलते-फिरते पावर हाऊस हैं, जिनके भी मन में जीवन ऊर्जा पाने की भावना है, उन्हें चाहिए कि वे संतों से जुड़ें और संतोषी बनें।

चलना तो तुम्हें ही होगा
लोग कहते हैं संत पारस-मणि पत्थर है। मगर मैं कहता हूं : संत-मील का पत्थर है। संत उस मील के पत्थर की तरह है जो तुम्हें तुम्हारी मंजिल की दूरी बताता है। जो कहता है-इतना चल चुके हो तथा अभी इतना और चलना है। संत तो केवल मार्ग दिखा सकता है, चलना तो तुम्हें ही होगा। कहते हैं न कि घोड़े को नदी तक तो ले जा सकते हो, पानी भी दिखा सकते हो, मगर पिला नहीं सकते। मैं तुम्हें नदी तक ले आया हूं, पानी भी दिखा रहा हूं। अब पीना तो तुम्हें ही होगा। 

धर्म का आचरण
महावीर वाणी है : जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर वापस नहीं लौटते। जो मनुष्य अधर्म करता है, उसके वे दिन-रात बिल्कुल निष्फल हो जाते हैं लेकिन जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वे रात-दिन सफल हो जाते हैं। इसलिए जब तक बुढ़ापा नहीं सताता, जब तक व्याधियां नहीं बढ़तीं, जब तक इंद्रियां अशक्त नहीं होतीं, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए।

 

Niyati Bhandari

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