कड़वे प्रवचन... लेकिन सच्चे बोल- शांतिमय जीवन जीने के लिए क्या करें?

Tuesday, Mar 23, 2021 - 10:45 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

विज्ञापन का जमाना
आज विज्ञापन और मार्कीटिंग का जमाना है। किसी दुकान का माल कितना ही अच्छा क्यों न हो, यदि उसकी पैकिंग और विज्ञापन आकर्षक न हो तो वह दुकान चलती नहीं है। जैन धर्म के पिछड़ेपन का भी कारण यही है। जैन धर्म के सिद्धांत तो अच्छे हैं लेकिन उसकी पैकिंग और मार्कीटिंग अच्छी नहीं है। अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित जैन धर्म ‘जन-धर्म’ बनने की क्षमता रखता है लेकिन उसका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार न होने के कारण आज वह पिछड़ गया है।


शांत जीवन के लिए पूछा है
शांतिमय जीवन जीने के लिए क्या करें? कुछ मत करो, बस काम के समय काम करो और जब काम न रहे हो तो आराम करो। शाम को दुकान से घर लौटो तो दुकान घर मत लाओ और सुबह जब घर से दुकान जाओ तो घर को घर पर ही छोड़कर जाओ। जहां हो वहां अपनी 100 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज कराओ। आधे-अधूरे मन से कोई भी काम मत करो, इससे काम भी बिगड़ेगा और तनाव भी बढ़ेगा। झाड़ू ही क्यों न लगानी हो, पूरे आनंद से भर कर लगाओ।

निंदा मत करो
शब्द यात्रा करते हैं इसलिए पीठ पीछे भी किसी की निंदा मत करो। मुख से निकले किसी की निंदा के शब्द चलते-चलते संबंधित व्यक्ति के पास जरूर पहुंचते हैं और दुश्मनी कम होने के बजाय और बढ़ जाती है। पीठ पीछे दुश्मन की तारीफ करना सीखो। तारीफ के शब्द एक दिन उस तक जरूर पहुंचेंगे और 50 प्रतिशत दुश्मनी उसी समय खत्म हो जाएगी। याद रखें- संबोधन अच्छे हों तो संबंध भी अच्छे रहते हैं।


तू कैसा बेटा है
मां-बाप की आंखों में दो बार ही आंसू आते हैं। एक तो लड़की घर छोड़े तब और दूसरा लड़का मुंह मोड़े तब। पत्नी पसंद से मिल सकती है मगर मां तो पुण्य से ही मिलती है। इसलिए पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकरा देना। जब तू छोटा था तो मां की शैय्या गीली रखता था, अब बड़ा हुआ तो मां की आंख गीली रखता है। तू कैसा बेटा है? तूने जब धरती पर पहला सांस लिया तब मां-बाप तेरे पास थे। अब तेरा फर्ज है कि माता-पिता जब अंतिम सांस लें, तब तू उनके पास रहे।

- मुनी तरुण सागर जी

Niyati Bhandari

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