Muni Shri Tarun Sagar- कड़वे प्रवचन ... लेकिन सच्चे बोल

Sunday, Feb 28, 2021 - 01:36 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

शरीर पर किसका अधिकार
शरीर पर किसका अधिकार है? मां कहती है- मैंने इस नौ माह पेट में रखा है। इसलिए इस पर मेरा अधिकार है। पिता कहता है मैं न होता तो पुत्र पैदा ही नहीं होता। इसलिए इस पर मेरा अधिकार है। पत्नी कहती है- मैं अपने मां-बाप को छोड़कर आई हूं। इसलिए इस पर अब मेरा अधिकार है। आदमी एक दिन मर जाता है। शरीर को श्मशान में रख आते हैं तो श्मशान कहता है- इस पर अब मेरा अधिकार है। अब आप ही विचार करें कि इस शरीर पर आखिर किसका अधिकार है?


सबसे बड़ी कला
जीना एक कला है। हंसते हुए जीना इससे भी बड़ी कला है। हंसाते हुए जीना और भी बड़ी कला है। पर हंसते हुए मरना सबसे बड़ी कला है।
जब तुम पैदा हुए तो दुनिया हंस रही थी और तुम रो रहे थे। अब कुछ ऐसा करो कि जब तुम मरो तब दुनिया रोए और तुम हंसो। रोते हुए पैदा होना दुर्भाग्य नहीं है, वरन रोते-रोते जीना और रोते-रोते मर जाना- यह दुर्भाग्य है।

आदमी से मूढ़ कोई नहीं
आदमी से ज्यादा मूढ़ और कोई जानवर नहीं। जानवर अपनी प्रकृति में जीता है। उसे क्या खाना है और क्या नहीं खाना पता है लेकिन आदमी को नहीं पता कि उसे क्या खाना है और क्या नहीं खाना। विज्ञापन के बलबूते आप जानवर को कुछ भी नहीं खिला सकते लेकिन इंसान को खिला सकते हैं। टी.वी. पर अंडे का विज्ञापन आता है, आदमी अंडा खाना शुरू कर देता है। शराब का विज्ञापन आता है, शराब पीना शुरू कर देता है।

अपनी कमियां कोई नहीं देखता
एक बार छलनी ने सूई से कहा, ‘‘बहन! बुरा मत मानना। तुम इतनी छोटी हो फिर भी तुम में छिद्र है।’’

छलनी की बात सुन सूई मुस्कराई और बोली, ‘‘मेरी बड़ी बहन, मुझे बड़ा आश्चर्य है कि तुम्हें मेरा छोटा सा छिद्र तो दिख गया और तू जो स्वयं छेदों से भरी पड़ी है इसका तुझे पता नहीं।’’

हमारी जिंदगी का भी यही हाल है। हमें दूसरों की थाली में पड़ी ‘इल्ली’ तो दिख जाती है लेकिन अपनी थाली में पड़ी हुई ‘बिल्ली’ नहीं दिखती।

Niyati Bhandari

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