मुस्कुराने से जीवन बन सकता है सत्यं-शिवं-सुंदर: मुनि श्री तरुण सागर जी

Monday, Sep 21, 2020 - 01:37 PM (IST)

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धरती हंसती थी
लोग कहते हैं कि रावण और सिकंदर जब इस धरती पर चलते थे तो धरती कांपती थी लेकिन मैं कहता हूं कि वह कांपती नहीं अपितु हंसती थी और कहती थी, बच्चू! मेरे ही अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो, ठीक है। थोड़ी देर और उछल-कूद लो। आना तो मेरी ही गोद में है।

यही है जिंदगी
तुम्हारी जिंदगी है क्या? नदी-नाव संयोग। तुम नदी पार होने गए, नाव पर सवार हुए और भी जो लोग इधर-उधर से किनारे पर आकर खड़े थे, वे भी सब आ गए।  नाव आगे बढ़ी। कुछ जान-पहचान हुई। तुमने उनका पता पूछा, उन्होंने तुम्हारा पता पूछा। कुछ लोगों से दोस्ती हो गई और कुछ लोगों से दुश्मनी। देखते ही देखते नाव दूसरे किनारे लग गई। सब बटोही उतर पड़े और अपनी-अपनी राह चल पड़े। बस यही है जिंदगी।

मुस्कुराओ, क्योंकि...
मुस्कुराओ! क्योंकि जिंदा आदमी ही मुस्कुराता है। मुर्दा कभी नहीं मुस्कुराता। मुस्कुराओ। क्योंकि  मुस्कुराता हुआ बुड्ढा भी अच्छा लगता है और रोता हुआ बच्चा भी बुरा लगता है।  मुस्कुराओ! क्योंकि आदमी स्मार्ट मोबाइल से नहीं, स्माइल से बनता है। मुस्कुराओ! क्योंकि मुस्कुराहट का कोई साइड-इफैक्ट नहीं होता। मुस्कुराओ! क्योंकि जब पांच सैकंड मुस्कुराते हैं तो फोटो सुंदर आती है, हर वक्त मुस्कुराने लगो जीवन सत्यं-शिवं-सुंदर बन जाएगा।

Jyoti

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