शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार
Wednesday, Jun 08, 2022 - 11:14 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक बार कालिदास को अहंकार हो गया कि मेरे पास सभी प्रश्रों के उत्तर हैं। वह एक गांव से गुजर रहे थे, उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने द्वार पर खड़े होकर आवाज लगाई माता पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा। स्त्री बोली बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। पहले अपना परिचय दो।
कालिदास ने कहा मैं पथिक हूं, कृपया पानी पिला दें। स्त्री बोली तुम पथिक कैसे हो सकते हो? पथिक तो केवल दो ही हैं, सूर्य व चंद्रमा जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते हैं। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा मैं मेहमान हूं। स्त्री बोली तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम? कालिदास बोले मैं सहनशील हूं। स्त्री ने कहा नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। वह बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है। दूसरा पेड़, जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो? अब कालिदास पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे।
कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और बोले तुम जीते मैं हारा। वृद्धा ने कहा उठो वत्स! आवाज सुनकर कालिदान ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुन: नतमस्तक हो गए। माता ने कहा शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए यह स्वांग करना पड़ा। कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और तभी कालिदास का स्वप्न टूट गया और वह इधर-उधर देखने लगे।