संसार के सबसे सुखी व्यक्ति बनना चाहते हैं तो अवश्य पढ़ें ये कथा

Tuesday, Sep 29, 2020 - 08:33 AM (IST)

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Pari ki kahani: हरे समुद्र में दूर एक जलपरी अपनी धुन में मग्न, इठला-इठला कर तैर रही थी। शाम का समय था। ठंडी हवा बह रही थी। सूरज की सुनहरी किरणें समुद्र के पानी पर पड़ रही थीं। परी का मन खुशी से झूम रहा था। तभी अचानक उसने चौंककर पीछे देखा। कुछ दूर नाव में दो मछुआरे मछलियां पकड़ने के लिए उसी तरफ आ रहे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे।



एक मछुआरा कह रहा था, ‘‘हमारी भी क्या जिंदगी है। दिन-भर मेहनत करने के बाद भी दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता। ऊपर से दूसरे झंझट? कभी बेटा बीमार हो गया तो कभी बेटी की शादी की चिंता। हमारी तो रोजी-रोटी का भी कुछ पक्का नहीं। कभी समुद्र में तूफान आ गया तो नावें उलट जाती हैं। हमसे अच्छी तो मछलियां हैं। कैसे आनंद से पानी में तैरती हैं। इन्हें न कोई फिक्र और न ही कोई चिंता।’’

उनकी बातें सुनकर परी की उत्सुकता जाग उठी। वह सखियों को मछुआरों की बातचीत सुनाने लगी।  परी की सखियों ने भी अपने-अपने अनुभव सुनाए। एक परी बोली, ‘‘हां-हां, मैं भी एक दिन तट पर गई तो मैंने एक लड़की को रोते हुए देखा जिसके पिता मर गए थे।’’


तभी एक दूसरी परी बीच में बोल पड़ी, ‘‘लेकिन धरती पर केवल दुख ही दुख नहीं हैं। मैंने भी तट पर एक घटना देखी थी। मुझे लगा कि धरती पर रहने वाले लोग बहुत सुखी हैं। मैंने देखा, एक स्त्री और पुरुष चादर बिछाकर तट से कुछ दूर बैठे हुए थे। स्त्री छोटी-छोटी तश्तरियों में भोजन डालकर उसे दे रही थी। पुरुष बड़े सुरीले स्वर में गा-गाकर बच्चों को बहला रहा था। बच्चों की तोतली आवाजें सुनकर मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि जी हुआ, उनके पास ही चली जाऊं।’’

जलपरी बोली, ‘‘यही मैं देखना चाहती थी कि यह सुख-दुख है क्या? इंसानों का जीवन सचमुच मजे का होगा। कभी सुख, कभी दुख, कभी हंसना, कभी रोना।’’

सभी ने उसे मना किया, ‘‘सुन री जलपरी! चाहे जैसा भी हो वहां का जीवन, तू वहां मत जाना। जो जहां रहता है, उसे वहीं अच्छा लग सकता है, दूसरी जगह नहीं।’’

पर जलपरी नहीं मानी। वह बूढ़ी जादूगरनी के पास गई। बोली, ‘‘मौसी! मुझे सुंदर-सी लड़की बना दो। मैं धरती पर जाना चाहती हूं ताकि वहां के लोगों के सुख-दुख को करीब से जान सकूं।’’

बूढ़ी जादूगरनी ने भी उसे धरती पर जाने से रोका। बहुत समझाया पर जलपरी नहीं मानी, तब जादूगरनी ने उसे एक सुंदर-सी लड़की बना दिया। फिर आशीर्वाद देते हुए बोली, ‘‘जब तुम पर कोई मुसीबत पड़े तो मुझे याद करना, मैं फिर तेरा रूप बदलकर तुझे  कुछ भी बना दूंगी।’’



तैरते-तैरते जलपरी समुद्र तट पर आ पहुंची। रात काफी हो चुकी थी। चारों ओर एकदम सुनसान लग रहा था। तभी उसे दूर एक टिमटिमाता हुआ प्रकाश दिखाई दिया। लड़की बनी जलपरी उसी दिशा में बढ़ने लगी। घर के द्वार पर पहुंचकर उसने कुंडी खटखटाई। एक खूबसूरत नवयुवक ने दरवाजा खोला। परी उसे देखते ही उस पर मोहित हो गई। वह बहाना बनाते हुए बोली, ‘‘हमारी नाव डूब गई है।  बहुत से लोग साथ थे, पता नहीं कोई बचा या नहीं। मैं किसी तरह तैरकर किनारे तक आ पहुंची हूं। क्या यहां रात-भर के लिए कोई ठिकाना मिल सकेगा? सुबह-सवेरे ही चली जाऊंगी।’’

भीतर उस युवक की मां खाना बना रही थी। वह वहां से चिल्लाकर बोली, ‘‘बेटा! दुखियारी है बेचारी, अंदर बुला लो।’’

युवक और उसकी मां ने लड़की बनी जलपरी का खूब सत्कार किया। उसे पहनने के लिए दूसरे कपड़े दिए। भरपेट स्वादिष्ट भोजन कराया। सोने के लिए नर्म, मुलायम बिस्तर दिया। सुबह उठकर लड़की ने जाने का दिखावा किया तो युवक की मां ने उसे रोक लिया।  वह उसे इतनी अच्छी  लगी कि उसने उसे अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया। वह अपने बेटे से बोली, ‘‘अरे बेटा! इतनी सुंदर और भोली लड़की तुझे फिर कहां मिलेगी और फिर बेचारा बेसहारा भी तो है। मैं तो आज ही गांव वालों को तुम दोनों के विवाह की सूचना देने जाऊंगी।  कोई शुभ दिन तय करके इसे अपनी बहू बनाऊंगी।’’

सचमुच मां ने उन दोनों का विवाह धूमधाम से कर दिया। तीनों मिलकर आनंदपूर्वक रहने लगे। पर कुछ दिन बाद जलपरी का मन उचटने लगा। उसे समुद्र में खेलने-तैरने की बड़ी इच्छा होने लगी। अपनी सहेलियों की याद सताने लगी। इधर युवक और उसकी मां से भी उसका लगाव बहुत बढ़ गया था। बेचारी दिन-भर बड़ी उलझन में रहती।

आखिर उसे एक उपाय सूझ गया। रात में जब सब गहरी नींद में सो जाते, वह घर से निकलती। परी बनती और उड़कर समुद्र में पहुंच जाती। पानी में खूब तैरती और सुबह होने से पहले ही घर लौट आती।

कुछ दिन तक किसी को कुछ पता नहीं चला लेकिन एक दिन कोई बुरा सपना देखने के कारण युवक की नींद आधी रात में टूट गई। पत्नी को घर में न पाकर वह परेशान हुआ। उसे खोजता-खोजता वह तट पर पहुंचा तो देखा, उसकी पत्नी परी बनकर पानी में तैर रही थी। पति को देख घबराकर परी तुरन्त पहले रूप में आ गई। युवक ने उसका रूप बदलना देख लिया। उसे पूरा यकीन हो गया कि यह कोई जादूगरनी है, लड़की नहीं। घर ले जाकर युवक ने उसे एक कोठरी में बंद कर दिया। ओझा को बुलवाया। ओझा ने उसे देखकर कहा, ‘‘यह समुद्र के अंदर से आई है। इसे पानी से दूर रखो। पीने तक को पानी मत दो। तब यह ठीक-ठीक बता देगी कि यह कौन है। अभी तक यह तुम लोगों से झूठ बोलती रही है।’’



लड़के ने वही किया। कुछ ही देर में लड़की बनी जलपरी घबरा गई। वह फूट-फूट कर रोने लगी, पर किसी ने उस पर दया न दिखाई। परी को अपनी सहेलियों द्वारा उसे यहां आने से मना करना याद आ गया। उसे बूढ़ी जादूगरनी की भी याद आने लगी। अचानक उसे याद आया कि जादूगरनी ने कहा था, ‘‘तुम जब भी मुझे याद करोगी, मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगी।’’

परी ने जादूगरनी को आवाज लगाई। जादूगरनी ने तब अपने जादू  से उसे एक नन्हीं चिड़िया में बदल दिया। चिड़िया बनकर जलपरी खिड़की के रास्ते से बंद कमरे से बाहर निकल आई। उड़ती-उड़ती वह नदी किनारे तक जा पहुंची। वहां पहुंचते ही वह फिर से परी रूप में आ गई।

जलपरी को वापस आया देख, उसकी सखियों ने उसे घेर लिया। उसने उससे समुद्री दुनिया से दूर धरती की दुनिया के अनुभव पूछे। जलपरी कहने लगी, ‘‘अपना घर सबसे अच्छा घर है। जो सुख अपने घर में मिलता है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता इसलिए हमें अपने घर को ही सजाना-संवारना चाहिए। बाहरी दुनिया के अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि ज्यादा की आस छोड़कर थोड़े में ही संतोष करना चाहिए।’’

सीख : दूसरों का सुख-वैभव देखकर कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, क्योंकि संतोषी व्यक्ति ही जीवन में सुख प्राप्त करता है।

(राजा पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘परियों की कहानियां’ से साभार)

Niyati Bhandari

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