Motivational Concept- धर्म से पहले ईमान

Sunday, Sep 11, 2022 - 12:09 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अबू खलीफा कपड़े के बड़े व्यापारी थे। पर वह थे पूर्ण ईमानदार। उनका मानना था-खुदा की सबसे बड़ी इबादत ईमान है। एक दिन उन्होंने अपनी दुकान के सभी कपड़ों के थानों को देखा। उनमें से एक थान ऊपर से तो देखने में सुन्दर था किन्तु उस थान में बीच-बीच में कुछ दाग लगे हुए थे और कहीं-कहीं पर फटा हुआ भी था। उन्होंने उस थान को एक तरफ रख दिया और नौकर को यह सूचित किया कि जब भी इस थान को बेचे तब थान क्रेता को यह बता देना कि यह बीच में से फटा हुआ है और दाग वाला भी है। इसे आधे मूल्य पर बेचना। 

एक दिन एक ग्राहक आया परन्तु नौकर ने वह थान पूरे मूल्य पर बेच दिया। खलीफा ने उससे पूछा तो  उसने कहा-मालिक! मुझसे भूल हो गई है, आपकी सूचना का मुझे ध्यान ही नहीं रहा।
खलीफा ने कहा-जाओ, उस ग्राहक का आधा पैसा लौटा दो। नौकर ने उस व्यक्ति की तलाश की तो पता चला कि वह आज ही एक काफिले के साथ चला गया है। खलीफा ने कहा-तुम बैठो। मैं स्वयं जाता हूं। वह ऊंट पर बैठकर काफिले की ओर चल दिए।

दूसरे दिन वह उस व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि हमारे नौकर ने आपको जो थान दिया वह फटा हुआ है और दाग भी लगे हुए हैं। उसने आपसे पूरा मूल्य ले लिया। उस नौकर से गलती हो गई। मैं क्षमाप्रार्थी हूं! और यह आधा मूल्य आप ले लीजिए। उस व्यक्ति ने कहा आपने यहां तक आने का कष्ट क्यों किया? भूल तो अनजाने में होती है इसलिए माफी का तो प्रश्र ही नहीं उठता। अबू खलीफा ने कहा-भूल चाहे ज्ञात अवस्था में हुई हो या अज्ञात में हुई हो, जब तक उसका प्रायश्चित नहीं होता तब तक वह विष-बेल की तरह बढ़ती रहती है। अत: उसका प्रायश्चित आवश्यक है। 

—आचार्य ज्ञान चंद्र

Jyoti

Advertising