Motivational Concept: ‘कर्तव्य’ से बढ़कर कुछ भी नहीं

Sunday, Aug 07, 2022 - 11:46 AM (IST)

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खलीफा हजरत उमर वेश बदल कर लोगों के बीच घूमा करते थे। यह देखने के लिए कि किसी को कोई कष्ट तो नहीं है। एक बार वह किसी झोंपड़ी के पास से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा एक स्त्री फर्श पर बीमार पड़ी है। चूल्हे पर हांडी चढ़ी है, पास में बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। उन्होंने स्त्री के नजदीक जाकर पूछा, ‘‘तुम बच्चों को खाने को क्यों नहीं दे रही?’’

स्त्री ने उनकी ओर देखा और बोली, ‘‘इन्हें खिलाने को मेरे पास है क्या?’’ उमर ने पूछा, ‘‘इस हांडी में क्या पक रहा है?’’

वह बोली, ‘‘मुझसे क्या पूछते हो? 

अपने-आप क्यों नहीं देख सकते?’’

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हजरत उमर ने देखा कि उसमें खाली पानी उबल रहा था। बच्चों को बहलाने के लिए स्त्री ने यह युक्ति की थी। उमर ने कहा, ‘‘तुम्हारे पास कुछ नहीं था तो तुम खलीफा के पास क्यों नहीं गई?’’

स्त्री बोली, ‘‘खलीफा का यह फर्ज नहीं कि इसकी जानकारी रखें?’’

उमर ने कहा ,‘‘खलीफा के देश में इतने लोग हैं। वह आखिर हर किसी की देखभाल कैसे कर सकते हैं?’’

स्त्री तनाव आ गया बोली , ‘‘अगर खलीफा मेरे पति को लड़ाई में भेज सकते हैं तो क्या उन्हें स्त्री-बच्चों के खाने-पीने का इंतजाम खुद नहीं करना चाहिए?’’

बात सही थी। उमर ने फौरन शाही भंडार से खाने का सामान मंगवाया, उनको खिलाया और आगे का सारा इंतजाम भी कर दिया।  
 

Jyoti

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