सर्वश्रेष्ठ ‘शासक’ वहीं जो खुद से पहले करे प्रजा का भला

Saturday, Jul 30, 2022 - 01:34 PM (IST)

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सम्राट अशोक के जन्मदिन का महोत्सव था। सभी प्रांतों के शासक एकत्र हुए थे। सम्राट की ओर से घोषणा हुई, ‘‘सर्वश्रेष्ठ शासक आज पुरस्कृत होगा।’’

उत्तर सीमांत के प्रांत पति ने बताया, ‘‘प्रादेशिक शासन की आय मैं 3 गुना कर चुका हूं।’’

दक्षिण के शासक ने निवेदन किया, ‘‘राजकोष में प्रतिवर्ष की अपेक्षा द्विगुण स्वर्ण मेरे प्रांत ने अर्पित किया है।’’

पूर्वी प्रदेशों के अधिकारी ने सूचना दी, ‘‘पूर्वी सीमांत के उपद्रवियों को मैंने कुचल दिया। वे राज्य के विरुद्ध सिर उठाने का साहस फिर नहीं करेंगे।

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एक और प्रांताधिप उठे, ‘‘प्रजा से प्राप्त होने वाली आय बढ़ गई है, सेवकों का व्यय घटा दिया और आय के कुछ दूसरे साधन भी ढूंढ लिए गए हैं। कोषाध्यक्ष श्रीमान को विवरण देंगे।’’

अंत में उठे मगध के प्रांतीय शासक। उन्होंने नम्रतापूर्वक कहा, ‘‘श्रीमान, मैं क्या निवेदन करूं। मेरे प्रांत ने प्रतिवर्ष की अपेक्षा आधे से भी कम धन राजकोष में दिया है। प्रजा का कर घटाया गया है। राज्यसेवकों को कुछ अधिक सुविधा दी गई है। प्रांत में सार्वजनिक धर्मशालाएं  तथा मार्गों पर उपयुक्त स्थलों में कुएं बनवाए गए हैं। अनेक स्थानों पर रोगियों की चिकित्सा के लिए चिकित्सालय खोले गए हैं और प्रजा के बालकों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त पाठशालाएं खोली गई हैं।’’

सम्राट सिंहासन से उठे। उन्होंने घोषणा की, ‘‘मुझे प्रजा का शोषण करके प्राप्त होने वाला स्वर्ण नहीं चाहिए। प्रजा की उचित बातें सुने बिना, उनका दमन करने की मैं निंदा करता हूं। प्रजा को सुख-सुविधा दी जाए, यही मेरी इच्छा है। मगध के प्रांतीय शासक सर्वश्रेष्ठ शासक हैं। इस वर्ष का पुरस्कार उनका गौरव बढ़ाएगा। अन्य प्रांतों के शासक उनसे प्रेरणा ग्रहण करें।’’  —स्वामी स्वतंत्रतानंद जी महाराज

Jyoti

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