क्रांतिकारी सूफी संत कवि बू अली शाह कलंदर

punjabkesari.in Sunday, Sep 26, 2021 - 07:09 PM (IST)

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धर्म,  संप्रदाय, बोली-भाषा, क्षेत्र, रंग व ङ्क्षलग आदि के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिशें होती आई हैं लेकिन पीरों, फकीरों व पैग बरों ने हमेशा मानव एकता का संदेश दिया है। सूफी कवि एवं संत हजरत बू अली शाह कलंदर के उर्स के उपलक्ष्य में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में ऐसा ही नजारा देखने को मिला जब भारत और पाकिस्तान के लोगों ने एक साथ मिलकर कलंदर साहब को खिराजे अकीदत पेश किया।

पाकिस्तान के श्रद्धालुओं ने पानीपत में सूफी संत हजरत बू अली शाह कलंदर की दरगाह के दर्शन किए। कलंदर साहब के जीवन-दर्शन पर आयोजित वैबीनार में लाहौर में रह रहे हजरत बू अली शाह कलंदर के सज्जादानशीं जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने मु यातिथि और भारत के लोक जीवन के इतिहासकार डॉ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी ने मु यवक्ता के रूप में शिरकत की।

वैबीनार का संयोजन ‘नित्यनूतन वार्ता’ के प्रभारी राममोहन राय, प्रसिद्ध इतिहासकार सुरेन्द्र पाल सिंह व पाकिस्तान की संस्कृति कर्मी असमारा नोमानी ने संयुक्त रूप से किया।

राजीव रंजन चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि पानीपत में  कलंदर साहब की दरगाह पर हिन्दू और मुसलमान एक साथ एक ही भावना से आ कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। वह ऐसी जगह है, जहां लकीरें मिट जाती हैं।

चतुर्वेदी ने कहा कि पानीपत आने से पहले वह मदरसा चलाते थे। साहित्य, भाषा और धर्म पढ़ाते थे। जब वह पानीपत लौटे तो वजीराबाद में विश्राम किया। वहां उन्हें वाब आया है कि क्या तेरा जन्म इसीलिए है? सुबह के समय उन्होंने सारी किताबें यमुना में बहा दीं।

साहित्य के आलोचकों ने कलंदर शब्द पर चर्चा की है लेकिन इस शब्द का सबसे अच्छा अर्थ है मुक्त पुरुष। उस समय संगीत को धर्म के विरुद्ध माना जाता था, लेकिन हजरत बू अली शाह कलंदर को संगीत से बहुत लगाव था।

समाज की दृष्टि से कलंदर का मु य संदेश इश्क है। इश्क को लेकर उन्होंने खूब शायरी लिखी है। प्यार के उस चरम पर वह पहुंचे हुए हैं, जहां अहंकार और अभिमान नहीं रहता। इश्क में आशिक द्वारा अपनी तमन्नाएं ही कुर्बान नहीं की जातीं, बल्कि आशिक अपनी खुदी को मिटा देता है। वह कहते हैं तुम अपनी हस्ती को खत्म कर दो। इश्क और मैं दो अलग-अलग चीजें हैं। जब इश्क पैदा होगा तभी परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं। कलंदर साहब के अनुसार आशिक का आदर्श परवाना है। इश्क के मार्ग में कातिल को बद-दुआओं के स्थान पर दुआएं दी जाती हैं। कलंदर कहते हैं-इश्क अव्वल, इश्क आखिर, इश्क गुल।

उन्होंने कहा प्रेमाश्रयी मार्ग में सूफी धारा बहुत बड़ी है। हिन्दी साहित्य की सूफी काव्यधारा को समझने के लिए कलंदर साहब के लिखे को पढऩा जरूरी लगता है हालांकि उनका साहित्य फारसी में है। उन्होंने बताया कि अलाउदीन खिलजी की सौगात को लेकर अमीर खुसरो पानीपत बू अली शाह कलंदर के पास आए थे।

जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर ने मोहब्बत का संदेश दिया। भाईचारा ही असल है। इंसानियत की बात सबसे बुनियादी है। हमें इसे सीखना चाहिए। हमें आपस में बंटना नहीं है, जुडऩा है। झगड़े का कोई फायदा नहीं है।
भारत-पाकिस्तान के लोगों को एक-दूसरे के यहां आने-जाने के मौके मिलने चाहिएं ताकि कलंदर साहब जैसे सूफी-संतों के संदेश को पूरी दुनिया में फैलाया जा सके। एक-दूसरे की इज्जत करें।

राममोहन राय ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर की पूरी दुनिया में याति है। पानीपत के लोगों को पानीपत की लड़ाइयों के लिए नहीं, बल्कि हजरत बू अली शाह कलंदर का शहर होने के कारण इज्जत मिली है। प्रसिद्ध गांधीवादी निर्मला देशपांडे कलंदर के भाईचारे व मानवता के संदेश से खासी प्रभावित थीं। उन्होंने कहा कि सियासत को लहू पीने की लत है। वरना यहां सब खैरियत है। उन्होंने कहा कि जनता की भावनाएं भाईचारे की हैं, ये भावनाएं मजबूत होनी चाहिएं।

सुरेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि भारत व पाकिस्तान के लोगों में एक-दूसरे से मिलने-जुड़ने की कसमसाहट है। इसी की अभिव्यक्ति ‘आगाजे दोस्ती’ नाम की संस्था द्वारा हर वर्ष दोनों देशों के भाईचारे के लिए निकाली जाने वाली यात्रा से होती है। दिल्ली, हरियाणा व पंजाब के विभिन्न स्थानों से होते हुए यात्रा 14-15 अगस्त को वाघा बॉर्डर पर पहुंचती है। वहां देश भर के कार्यकत्र्ता भाईचारे के लिए दीए जलाते हैं। उन्होंने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर दोनों देशों की एकता के प्रतीक हैं।  

लाहौर में रहने वाली असमारा नोमानी ने कहा कि वे हजरत बू अली शाह कलंदर के सज्जादानशीं के परिवार से हैं। बंटवारे के बाद उनका परिवार पानीपत से पाकिस्तान चला आया  तथा बंटवारे के बाद से लाहौर में कलंदर साहब का सलाना उर्स मुबारक लगातार आयोजित करता आ रहा है।

वैबीनार में लाहौर से उर्स व कव्वालियों की वीडियो दिखाई गई। पानीपत में कलंदर की दरगाह की तरफ से मु य वक्ता व असमारा नोमानी को चादर भेंट करके स मानित किया गया।

वैबीनार में पाकिस्तान से जुड़े विचारक साजिद नोमानी ने कहा कि मजहब रीतियों तक सिकुड़ कर रह गया है। माथा टेकने पर काम नहीं चलेगा। उन्होंने बताया कि बू अली शाह कलंदर का असली नाम शरफूद्दीन था। उन्होंने लिखा है:

शरफा चूड़ी कांच की, दमड़ी-दमड़ी बेच।
जब लग लागे पियू के, लाख टके की एक॥
 


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Content Writer

Jyoti

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